Up board class 10 hindi full solution chapter 3 sanskrit khand

Up board class 10 hindi full solution chapter 3 sanskrit khand: वीर वीरेण पूज्यते

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तृतीय पाठ वीर वीरेण पूज्यते


लघु उत्तरीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्न- अलक्षेन्द्रः क: आसीत् ? (2016CB, 19AC)
उत्तर- अलक्षेन्द्रः यवनराज: आसीत्|

प्रश्न -पुरुराजः कः आसीत् ? (2017AC,19AG)
उत्तर- पुरुराजः एकः भारतवीर: आसीत् |

प्रश्न-3.पुरुराजः केन सह युद्धम् अकरोत् ? (2017AD,19AB,20MF)
उत्तर – पुरुराजः अल्क्षेन्द्रेण सह युद्धम् अकरोत्|

प्रश्न-4.वीरः केन पूज्यते? (2016CD,17AA,AB,AD,20ME,MA,MF)
उत्तर – वीरः वीरेण पूज्यते|

प्रश्न-5.आम्भीकः अलक्षेन्द्रस्य कः आसीत् ?
आम्भीकः अलक्षेन्द्रस्य भारत वीरौ आसीत् |

प्रश्न-6. ‘सिंहस्तु सिंह एव, वने वा भवतु पञ्जरे वा ‘ इति कः प्रत्युत्तरम् अददात् ?
‘सिंहस्तु सिंह एव, वने वा भवतु पञ्जरे वा’ इति पुरुराज: प्रत्युत्तरम् अददात् |

प्रश्न-7. केन कारणेन पुरुराजः अलक्षेन्द्रस्य मैत्रीसन्धिम् अस्वीकारयत् ?
उत्तर- अलक्षेन्द्र: भारतीय नृपै सह मैत्री कृत्वा भारतं बिभाज्य जेतुम इच्छति अथ पुरुराजः अलक्षेन्द्रस्य मैत्रीसन्धिम् अस्वीकारयत् ||

प्रश्न-8. पुरुराजः अलक्षेन्द्रं कस्याः सन्देशम् अकथयत् ?
उत्तर- पुरुराजः अलक्षेन्द्रं गीताया: सन्देशम् अकथयत्

प्रश्न-9. अलक्षेन्द्रः सेनापतिं किम् आदिशत्?
अलक्षेन्द्रः सेनापतिं आदिशत् यत् वीरस्य पुरुराजस्य बन्धनानि मोचय|

प्रश्न-10. गीतायाः कः सन्देशः ?
अथवा
पुरुराजः गीतायाः कः सन्देशम् अकथयत् ? (2016CG)
उत्तर – हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् इति अस्माकं गीतायाः सन्देशः |

प्रश्न-11. अलक्षेन्द्रः पुरुं किम् अपृच्छत्?
उत्तर- अलक्षेन्द्रः पुरुं अपृच्छत् मम मैत्रीसन्धे अस्वीकरणे तव किम् अभिमतम् आसीत् |

प्रश्न-12.भारत विजयः न केवलं दुष्करः असम्भवोऽपि, कस्य उक्तिः?
उत्तर – भारत विजयः न केवलं दुष्करः असम्भवोऽपि, पुरुराजस्य उक्तिः||

प्रश्न-13. भारतम् एकं राष्ट्रम् इति विरुद्धम् कस्य उक्तिः? (2018HF,20MD)
उत्तर – भारतम् एकं राष्ट्रम् इति विरुद्धम् अल्क्षेन्द्रस्य उक्तिः |

प्रश्न-14.अलक्षेन्द्रः पुरुराजस्य केन भावेन हर्षितः अभवत्?
अलक्षेन्द्रः पुरुराजस्य वीर भावेन हर्षितः अभवत्|

प्रश्न-15.किं जित्वा भोक्ष्यसे महीम्? (2016CG)
उत्तर – युद्धम् जित्वा भोक्ष्यसे महीम् |

Up board class 10 hindi full solution chapter 3 sanskrit khand


अनुवादात्मक प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए
(क) सेनापतिः – विजयतां सम्राट् ……………………. अवसरं लभते।
सेनापतिः – विजयतां सम्राट।
पुरुराजः – एष भारतवीरोऽपि यवनराजम् अभिवादयते।
अलक्षेन्द्रः – (साक्षेपम्) अहो ! बंधंगत: अपि आत्मानं वीर इति मन्यसे पुरुराज ?
पुरुराजः : यवनराज! सिंहस्तु सिंह एव, वने वा भवतु पञ्जरे वा।
अलक्षेन्द्र; = किन्तु पंजरस्थ: सिह: न किमपि परक्रमाते ||
पुरुराजः : पराक्रमते, यदि अवसरं लभते।
अनुवाद – सेनापति- सम्राट की जय हो
पुरुराज – यह भारत वीर भी यवन राज का अभिवादन करता है
अलक्षेन्द्रः- (मन में) अरे ! बंधन में होते हुए भी अपने आप को वीर मानते हो पुरुराज |
पुरुराज: हे यवन राज शेर तो शेर होता है वन में रहे या पिन्जरे में |
अलक्षेन्द्रः- किन्तु पिंजरे में स्थित शेर कोई पराक्रम नहीं करता |
पुरुराज – पराक्रम दिखाता है यदि अवसर प्राप्त हो | (ख) बन्धनं ……………………………………..’भावो हि वीरता।(2017AE,19AF)
बन्धनं मरणं वापि जयो वापि पराजयः।
उभयत्र समो वीरः वीर भावो हि वीरता॥
अनुवाद – बंधन हो या मरण हो जय हो या पराजय हो वीर दोनों दशाओं में सामान रहता है वीर भाव ही वीरता है |
(ग) पुरुराजः-आम्…………………………………… परस्परं द्रुह्यन्ति।
पुरुराजः : आम् राष्ट्रद्रोहः यवनराज! एकम् इदं भारतं राष्ट्रम्, बहूनि चात्र राज्यान्, बहवश्च शासकाः। त्वं मैत्रीसन्धिना तान् विभज्य भारतं जेतुम् इच्छसि। आम्भीकः चास्य प्रत्यक्षं प्रमाणम् ।
अलक्षेन्द्र: – भारतं एकं राष्ट्र्म इति तव वचनं विरुद्धम | इह तावत राजान: जना: च परस्परं द्रुह्यन्ति |
अनुवाद = पुरुराज हाँ राष्ट्र द्रोह यवनराज! यह भारत एक राष्ट्र है यहाँ बहुत से राज्य है और बहुत से शासक है | तुम मित्रता की संधि से उनको विभाजित करके भारत जीतने की इच्छा रखते हो |
सिकदर = भारत एक राष्ट्र है यह तुम्हारा कथन गलत है | यहाँ tतो राजा और प्रजा आपस में द्वेष करते है |
(घ) सेनापति! आदिशतु सम्राट् ………… असह्यः यवनराज !
सेनापतिः : आदिशतु सम्राट।
अलक्षेन्द्र: – अथ मम मैत्री संधे अस्वीकरणे तव किम अभिनतम आसीत् पुरुराज !
पुरुराजः : स्वराज्यस्य रक्षा, राष्ट्रद्रोहाच्च मुक्तिः।
अलक्षेन्द्रः: मैत्रीकरणेऽपि राष्ट्रद्रोहः?
पुरुराजः : आम् राष्ट्रद्रोहः यवनराज! एकम् इदं भारतं राष्ट्रम्, बहूनि चात्र राज्यान्, बहवश्च शासकाः। त्वं मैत्रीसन्धिना तान् विभज्य भारतं जेतुम् इच्छसि। आम्भीकः चास्य प्रत्यक्षं प्रमाणम् ।
अलक्षेन्द्र: – भारतं एकं राष्ट्र्म इति तव वचनं विरुद्धम | इह तावत राजान: जना: च परस्परं द्रुह्यन्ति |
पुरुराज – तत् सर्वम् अस्माकम् आंतरिक: विषय: | बाह्य शक्ते: तत्र हस्तक्षेप: असह्य : |
अनुवाद –
सेनापति – सम्राट आज्ञा दें |
सिकंदर – अच्छा तो मेरी मित्रता की संधि स्वीकार करने में तुम्हारी क्या इच्छा थी , पुरुराज |
पुरुराज – अपन राज्य की रक्षा और राष्ट्र द्रोह से मुक्ति |
सिकंदर – मित्रता करने में भी राष्ट्रद्रोह ?
पुरुराज – हाँ राष्ट्र द्रोह यवनराज! यह भारत एक राष्ट्र है यहाँ बहुत से राज्य है और बहुत से शासक है | तुम मित्रता की संधि से उनको विभाजित करके भारत जीतने की इच्छा रखते हो |
सिकदर – भारत एक राष्ट्र है यह तुम्हारा कथन गलत है | यहाँ tतो राजा और प्रजा आपस में द्वेष करते है |
पुरुराज – वे सब हमारे आंतरिक विषय है बाहरी शक्ति उसमे हस्तक्षेप असहनीय है |

(ङ) उत्तरं यत् ………. ………..तत्र सन्ततिः।
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती तत्र सन्ततिः॥
अनुवाद –
(च) अलक्षेन्द्रः- भारतम् …………………. अस्माकं राष्ट्रम्।
अलक्षेन्द्र: – भारतं एकं राष्ट्र्म इति तव वचनं विरुद्धम | इह तावत राजान: जना: च परस्परं द्रुह्यन्ति |
पुरुराज – तत् सर्वम् अस्माकम् आंतरिक: विषय: | बाह्य शक्ते: तत्र हस्तक्षेप: असह्य : |
यवनराज! पृथग्धर्माः, पृथग्भाषाभूषा अपि वयं सर्वे भारतीयाः। विशालम् अस्माकं राष्ट्रम्।
अनुवाद –
सिकदर – भारत एक राष्ट्र है यह तुम्हारा कथन गलत है | यहाँ tतो राजा और प्रजा आपस में द्वेष करते हैं |
पुरुराज – वे सब हमारे आंतरिक विषय है बाहरी शक्ति उसमे हस्तक्षेप असहनीय है |अलग अलग धर्म अलग अलग भाषा वेश भूषा होने पर भी हम सब भारतीय है | हमारा राष्ट्र विशाल है |

(छ) दुर्विनीत, किं न…….. ………..वीरेण वीरं प्रति।
अलक्षेन्द्र: – (सरोषम्) दुर्विनीत किं न जानासि , इदानीम विश्व विजयिन: आल्क्षेन्द्रस्य अग्रे वर्तसे |
पुरुराज: – जानामि किन्तु सत्य तु सत्यंएव यवनराज ! भारतीया: वयं गीताया: सन्देशम न विस्मराम: |
अलक्षेन्द्र: – कस्तावत् गीतायाः सन्देशः?
पुरुराजः – श्रूयताम् |
हतो वा प्राप्स्यसिस्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ||
निराशी निर्ममो भूत्वा युद्ध्स्य विगतज्वर: ||

अलक्षेन्द्र: – (किमपि विचिन्त्य)अलं तव गीतया | पुरुराज ! त्वं अस्माकम् वंदी वर्तसे | ब्रूहि कथं त्वयि वर्तितव्यम् || पुरुराज, त्वम् अस्माकं बन्दी वर्तसे । ब्रूहि. कथम् त्वयि वर्तितव्यम् ||
पुरुराजः : यथैकेन वीरेण वीरं प्रति।
अनुवाद –
सिकंदर -( क्रोध में ) रे दुष्ट क्या नहीं जानते हो इस समय विश्व विजयी सिकंदर के सामने हो
पुरुराज – जानता हूं किंतु सत्य तो सत्य है यवनराज ! हम भारतीयों को गीता का संदेश नहीं भूलना चाहिए|
सिकंदर – क्या है तुम्हारी गीता का संदेश ?
पुरुराज – सुनो
यदि मारे जाएंगे तो स्वर्ग को प्राप्त होंगे अथवा जीतकर प्रथ्वी का भोग करेंगे इसलिए इच्छारहित और ममता रहित तथा संताप रहित होकर युद्ध करो |
सिकंदर – (कुछ सोचकर) तुम्हारी गीता झूठी है, पुरुराज तुम हमारे बंदी हो कहो तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए
पुरुराज – जैसा एक वीर दूसरे बीर के साथ करता है |

(ज) अलक्षेन्द्रः अथ मे……………………. गीतायाः संदेशः।
अलक्षेन्द्र: – अथ मे भारतविजयः दुष्करः।
पुरुराजः : न केवलं दुष्करः असम्भवोऽपि।
अलक्षेन्द्र: – (सरोषम्) दुर्विनीत किं न जानासि , इदानीम विश्व विजयिन: आल्क्षेन्द्रस्य अग्रे वर्तसे |
पुरुराज: – जानामि किन्तु सत्य तु सत्यंएव यवनराज ! भारतीया: वयं गीताया: सन्देशम न विस्मराम: |
अलक्षेन्द्र: – कस्तावत् गीतायाः सन्देशः?
पुरुराजः – श्रूयताम् |
हतो वा प्राप्स्यसिस्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ||
निराशीनिर्ममो भूत्वा युद्धस्य विगतज्वर: ||

अलक्षेन्द्रः- (किमपि विचिन्त्य) अलं तव गीतया।
अनुवाद –
सिकंदर – तो मेरा भारत पर विजय प्राप्त करना कठिन है
पुरुराज – केवल कठिन ही नहीं है असंभव भी है
सिकंदर – (क्रोध में) रे दुष्ट क्या तू नहीं जानता कि इस समय (तुम) विश्व विजेता सिकंदर के सामने खडे हो |
पुरुराज – जानता हूं किंतु सत्य तो सत्य है यवनराज ! हम भारतीयों को गीता का संदेश नहीं भूलना चाहिए|
सिकंदर – क्या है तुम्हारी गीता का संदेश ?
पुरुराज – सुनो
यदि मारे जाएंगे तो स्वर्ग को प्राप्त होंगे अथवा जीतकर प्रथ्वी का भोग करेंगे इसलिए इच्छारहित और ममता रहित तथा संताप रहित होकर युद्ध करो |
सिकंदर – (कुछ सोचकर) तुम्हारी गीता झूठी है,

(झ) हतो वा …………………………………..विगतज्वरः।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
निराशीनिर्ममो भूत्वा युद्धस्य विगतज्वर: ||
अनुवाद – यदि मारे जाएंगे तो स्वर्ग को प्राप्त होंगे अथवा जीतकर प्रथ्वी का भोग करेंगे इसलिए इच्छारहित और ममता रहित तथा संताप रहित होकर युद्ध करो |

निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
(क) यवन सेनापति बन्दी पुरुराज को लाता है।
यवन सेनापति: वंदिन:पुरुराजम आनयति |
(ख) वीरभाव ही वीरता होती है।
वीर भावो हि वीरता भवति |
(ग) वीर के द्वारा वीर पूजा जाता है।
वीरः वीरेण पूज्यते|
(घ) तुम भारत को जीतना चाहते हो।
त्वं भारतं जेतुम इच्छसि|
(ङ) यह हमारा आन्तरिक विषय है।
इदं अस्माकम् आन्तरिकः विषयः||
(च) सागर के उत्तर में भारतवर्ष है।
सागरस्य उत्तरे भारतवर्ष: अस्ति |
(छ) भारत-विजय क्या मेरे लिये दुष्कर है ?
भारतविजयः किम् मम् दुष्करः|


व्याकरणात्मक प्रश्न –
(1) महोत्सव, चास्य, द्रोहाच्च, वीरोऽपि में सन्धि-विच्छेद कीजिए।
महोत्सव = महा + उत्सव
चास्य == च + अस्य
द्रोहाच्च = द्रोहात + च
वीरोऽपि = वीरो: +अपि

(2) प्राप्स्यसि, भोक्ष्यसे, अस्माकम्, तव इन क्रिया-पदों और शब्दों में क्रमशः पुरुष, वचन, लकार और विभक्ति लिखिए।
प्राप्स्यसि = लृट लकार मध्यम पुरुष एकबचन
भोक्ष्यसे = लृट लकार मध्यम पुरुष एकबचन
अस्माकम् = षष्ठी बहुबचन
तव = षष्ठी एकबबचन
पर्यायवाची शब्द
पर्वत = अद्रि, अचल।
समुद्र = वारिधि, जलधि, सिन्धु, रत्नाकर।

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