up board class 10 hindi full solution chapter 2 Tulasidas van path par

up board class 10 hindi full solution chapter 2 तुलसीदास वन पथ पर

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up board class 10 hindi full solution chapter 2 Tulasidas van path par तुलसीदास (काव्य खण्ड) वन पथ पर संदर्भ सहित अवतरणों की हिन्दी मे व्याख्या

अवतरण – 1 up board class 10 hindi full solution chapter 2

पुर ते निकसी रघुबीर-बधू,   धरि धीर दये मर में डग द्वे ।

झलक भरि भाल कनी जल की,   पुट सूखि गये मधुराधर वै ॥

फिरि बूझति हैं  चलनो अब केतिक,  पर्णकुटी करिहौ कित है ||

तिय की लखि आतुरता पिय की अँखिया अति चारु चलीं जल च्वै॥

शब्दार्थ –

  पुर = शृंगवेरपुर, । निकसी=निकली । रघुबीर-बधू = सीता जी । धरि धीर = धैर्य धारण करके। मग = रास्ता । द्वै = दोनों । मधुराधर = सुन्दर होंठ । केतिक = कितना । पर्णकुटी = पत्तों से निर्मित झोंपड़ी । तिय = पत्नी । चारु = सुन्दर । च्वै = चूने लगा ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “कवितावली”  से हमारी पाठ्य-पुस्तक “हिन्दी” के ‘काव्य-खण्ड’  में संकलित “वन-पथ पर”  शीर्षक कविता से अवतरित है ।।

प्रसंग – कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से अयोध्या से पैदल ही वन को जाती हुई सीताजी की थकावट का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या  – गोस्वामी तुलसीदास कहते है कि राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या से निकलकर  बड़े ही धीरज के साथ श्रृंगवेरपुर से आगे दो कदम(थोड़ी सी दूर ) ही चले थे कि सीताजी के माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं, और उनके सुन्दर ओर कोमल होंठ थकान के कारण सूख गये । तब सीताजी ने अपने प्रियतम (पति) राम से पूछा–अभी  हमें कितनी दूर और चलना पड़ेगा ? कितनी दूरी पर पर्णकुटी(पत्तों की कुटिया) बनाकर रहेंगे ? अन्तर्यामी श्रीराम, सीताजी की व्याकुलता का कारण तुरन्त समझ गये कि वे बहुत थक चुकी हैं, और विश्राम करना चाहती हैं । राजमहल का सुख भोगने वाली अपनी पत्नी की ऐसी दशा देखकर श्रीराम के सुन्दर नेत्रों से आँसू टपकने लगे ।

काव्यगत सौन्दर्य –

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1.प्रस्तुत पक्तियों में सीताजी की कोमलता ओर सुकुमारिता का बड़ा ही मनोहारी  वर्णन किया गया है।

2.सीता के प्रति भगवान राम के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति कि गयी है।

3.भाषा – सरस एवं मधुर ब्रज भाषा । ‘दये मग में डग द्वै’ इस पंक्ति मेन मुहावरे का भी  उत्कृष्ट प्रयोग है। इसी के कारण “अत्युक्ति अलंकार” भी है ।

4.शैली – चित्रात्मक और मुक्तक।

5.छन्द – सवैया छंद ।

6.अलंकार – “माथे पर पसीने की बूंदों के आने”,  “ होंठों के सूख जाने” में स्वभावोक्ति तथा ‘केतिक पर्णकुटी करिहौ कित’ में अनुप्रास अलंकार है ।

7.रस – श्रंगार रस |

9.गुण – प्रसाद एवं माधुर्य ।

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अवतरण – 2

जल को गए हैं लक्खन लरिका, परखो  पिय  छाँह घरीक है ठाढ़े।

पौंछ  पसेउ बयारि करौं,  अरु पाईं पखारिहौं भूभुरि डाढ़े ॥

तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानि कै बैठि बिलंब लो कंटक काढ़े ।

जानकी नाह को नेह लख्यौ,  पुलको तनु बारि बिलोचन बाढे ॥

शब्दार्थ – up board class 10 hindi full solution chapter 2

लरिका = पुत्र । परिखौ = प्रतीक्षा करो । घरीक = एक घड़ी । ठाढ़े = खड़े होकर । पसेउ = पसीना । बयारि = हवा । भूभुरि = रेत (धूल )। डाढ़े = तपे हुए । बिलंब लौं = बहुत देर तक। काढ़े = निकालते रहे । नाह = नाथ, स्वामी । पुलको तनु = शरीर रोमांचित हो गया। बिलोचन := नेत्र।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “कवितावली”  से हमारी पाठ्य-पुस्तक “हिन्दी” के ‘काव्य-खण्ड’  में संकलित “वन-पथ पर”  शीर्षक कविता से अवतरित है ।।

प्रसंग – इन पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास जी ने सीताजी की सुकुमारता और उनके प्रति राम के अपार  प्रेम का बड़े ही सुंदर ढंग से चित्रण किया है।

व्याख्या –

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि सीताजी श्रृंगवेरपुर से आगे चलने पर थक जाती हैं । वे विश्राम करने की इच्छा करती हैं । वे श्रीराम से कहती हैं कि पुत्र लक्ष्मण पानी लेने गये हैं,  इसलिए घड़ी(एक क्षण) भर किसी पेड़ की छाया में खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए । इतनी देर तक मैं आपका पसीना पोंछकर हवा करती रहूँगी | तथा गर्म रेत पर चलने से आपके पाँव जल गये होंगे,  उन्हें मैं जल से धो दूँगी । श्री रामचन्द्र जी यह सुनकर समझ गये कि सीताजी थक चुकी हैं । और  स्वयं विश्राम करने के लिए कहने में सकुची रही हैं । इसलिए वे बैठ गये और बड़ी देर तक  बैठकर उनके पैरों में चुभे हुए काँटे निकालते र हे। अपने प्रति पति का ऐसा प्रेम देखकर सीताजी पुलकित (हर्षित ) हो गयीं और उनकी आँखों से प्रेम के आँसू टपकने लगे |

काव्यगत सौन्दर्य –

1.गोस्वामी तुलसीदास जी ने आपत्ति  के समय श्रीराम और सीता के एक-दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण  भाव का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है, जो कि दाम्पत्य जीवन का एक आदर्श स्थापित  करता है।

2.गोस्वामी तुलसीदास जी ने सीताजी और श्रीराम की भावनाओं का आपस मे आदान-प्रदान बहुत ही दक्षतापूर्वक  प्रस्तुत किया है।

3.भाषा – ब्रज ।

4.शैली – मुक्तक शैली ।

5.छन्द-सवैया छंद ।

6.रस – श्रंगार रस।

7.अलंकार-अनुप्रास अलंकार ।

8. गुण – माधुर्य ।

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अवतरण – 3 up board class 10 hindi full solution chapter 2 van path par

रानी मैं जानी अजानी महा पबि पाहन हूँ ते कठोर हियो है ।

राजहु काज अकाज न जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान कियो है ।

ऐसी मनोहर मूरति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है ?

आँखिन में  सखि,  राखिबे जोग,  इन्हें किमि कै बनबास दियो है ?  ॥

शब्दार्थ –

 रानी=महारानी कैकेयी । अजानी = अज्ञानी । पबि = वज्र । पाहन = पत्थर ।  हियो = हृदय । काज अकाज = कार्य-अकार्य या उचित-अनुचित कार्य । तिय = स्त्री । कान कियो है = मान लिया है  । प्रीतम = स्नेह करने वाले । जोग = योग्य। किमि = क्यों ।

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “कवितावली”  से हमारी पाठ्य-पुस्तक “हिन्दी” के ‘काव्य-खण्ड’  में संकलित “वन-पथ पर”  शीर्षक कविता से अवतरित है ।।

प्रसंग -इन पंक्तियों के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने  ग्रामीण स्त्रियों के द्वारा महारानी कैकेयी और महाराज  दशरथ की निष्ठुरता पर की गयी प्रतिकृया का मनोहारी चित्रण किया है |

व्याख्या –. up board class 10 hindi full solution chapter 2 van path par

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि वन को जाते  समय रास्ते में स्थित एक गाँव की स्त्रियाँ राम, लक्ष्मण और सीता के सौन्दर्य तथा कोमलता को देखकर मोहित हो जाती है | महारानी कैकेयी को अज्ञानी और वज्र तथा पत्थर से भी कठोर हृदय वाली नारी कहती  हैं,   क्योंकि उसने ही  कोमल कुमारों  राम ओर लक्ष्मण  को वनवास  दिलवाया | वनववास देते समय तनिक भी दया न आयी। वे राजा दशरथ को भी विवेकहीन समझकर पत्नी के कहे अनुसार कार्य करने वाला ही समझती हैं,  और राजा में उचित-अनुचित समझने कि शक्ति  के ज्ञान की कमी को  मानती हैं। उन्हें आश्चर्य है कि इन सुन्दर मूर्तियों से बिछुड़कर इनके प्रियजन अर्थात इनका रोज़ दर्शन करने वाले लोग  कैसे जीवित रहेंगे ?  हे सखी! ये तीनों तो आँखों में बसाने योग्य हैं, 9छवि निहारने योगी है )  तब इन्हें किस कारण वनवास दिया गया है ?

काव्यगत सौन्दर्य –

1.यहाँ कवि ने ग्रामीण सखियों  की श्रीराम को देखकर उनके मन मे उपजे सहज ओर निश्चल प्रेम का सुन्दर चित्रण किया है।

2.भाषा – ब्रज भाषा।

3.‘कान भरना’ और ‘आँखों में रखना’ जैसे मुहावरों का प्रयोग किया गया है ।

4.शैली – मुक्तक शैली ।

5.छन्द – सवैया छंद ।

6.रस – करुण एवं श्रृंगार।

7.अलंकार – ‘जानी अजानी महा’ में अनुप्रास अलंकार  “काज अकाज”  में सभंगपद यमक अलंकार ।

8.गुण – माधुर्य ।

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अवतरण – 4

सीस जटा उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं ।
तून सरासन बान धरे, तुलसी बन-मारग में सुठि सोहैं ॥
सादर बारहिं बार सुभाय चितै, तुम त्यों हमरो मन मोहैं ।
पूछति ग्राम बधूसिय सों’ कहौ साँवरे से, सखि रावरे को हैं ॥


शब्दार्थ –
बिलोचन = नेत्र। बाहु= भुजा | तून = तरकस । सरासन = धनुष । सुठि = सुन्दर। सुभाय = स्वाभाविक रूप से। तुम त्यों = तुम्हारी ओर। रावरे = तुम्हारे ।


सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “कवितावली”  से हमारी पाठ्य-पुस्तक “हिन्दी” के ‘काव्य-खण्ड’  में संकलित “वन-पथ पर”  शीर्षक कविता से अवतरित है ।।

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प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में ग्रामवधुएँ सीता जी को घेरकर श्रीराम के विषय में हास परिहास करती हुई उनसे प्रश्न पूछ रही हैं।


व्याख्या – up board class 10 hindi full solution chapter 2 van path par

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि ग्रामवधुएँ सीताजी से पूछ रही हैं कि जो सिर पर जटा धारण किये हुए हैं, जिनके वक्षस्थल और भुजाएँ विशाल हैं, नेत्र लाल हैं, ओर भौंहें तिरछी-सी हैं। जो तरकस, धनुष और बाण धारण किये हुए हैं | इस वन-मार्ग में चलते हुए बहुत ही शोभायमान हो रहे हैं, जो सहज-स्वाभाविक रूप में बड़े ही सम्मान के साथ बार-बार तुम्हारी ओर देख रहे है इस प्रकार वे हमारे मन को भी आकर्षित कर रहे हैं। हे सखी! तुम हमें यह सच सच बताओ कि ये ” सुन्दर साँवले रूप वाले (राम) तुम्हारे कौन लगते हैं


काव्यगत सौन्दर्य –

1.ग्रामवधुओं ने सीताजी से हास परिहास से परिपूर्ण स्वाभाविक प्रश्न किया है।
2.यहाँ श्रीराम के रूप और छवि का सुन्दर वर्णन हुआ है।
3.भाषा – ब्रज भाषा ।
4.शैली – मुक्तक शैली ।
5.छन्द – सवैया।
6.रस – श्रंगार ।
7.अलंकार– सर्वत्र अनुप्रास।
8.गुण-माधुर्य।

अवतरण – 5 up board class 10 hindi full solution chapter 2 वन पथ पर


सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि दे नैन सैन तिन्हें, समुझाइ कछू मुसकाइ चली ॥
तुलसी तेहि औसर सोहै सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिकसीं मनो मंजुल कंज-कली ॥


शब्दार्थ –
बैन = वाक्य। सुधारस-साने = अमृत-रस में सने हुए। सयानी = चतुर । भली = अच्छी तरह से। सैन = संकेत । अवलोकति = देखती है । लाहु = लाभ । अली = सखी । अनुराग-तड़ाग = प्रेम रूपी सरोवर । बिकसीं = खिल रही हैं। मंजुल = सुन्दर। कंज = कमल ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित “कवितावली”  से हमारी पाठ्य-पुस्तक “हिन्दी” के ‘काव्य-खण्ड’  में संकलित “वन-पथ पर”  शीर्षक कविता से अवतरित है ।।


प्रसंग – इन पंक्तियों में सीताजी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ ग्राम सखियों को बता देती हैं ।


व्याख्या
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीताजी से पूछा कि ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं तब उन ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीताजी उनके मनोभाव को समझ गयीं । सीताजी अपने नेत्रो को राम की ओर तिरछी निगाह से देखती है ओर मुस्कराहट के द्वारा ही संकेत भरी दृष्टि से दे दिया, उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी । उन्होंने स्त्री लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय में यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं । तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी के इस प्रकार के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौन्दर्य को बहुत देर तक एकटक देखती रहीं ओर अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगीं । उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम रूपी सरोवर में रामरूपी सूर्य का उदय हो गया हो और ग्रामवधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गयी हों ।


काव्यगत सौन्दर्य –


1.सीता जी का ग्राम बधुओं के प्रति संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा को दर्शाता है |
2.प्रस्तुत पद में नारी जाती की लज्जा का वर्णन किया गया है |
3.भाषा – ब्रज।
4.शैली — चित्रात्मक व मुक्तक शैली ।
5.छन्द – सवैया छंद ।
6.रस – श्रृंगार ।
7.अलंकार – “”सुनि सुन्दर बैन सुधारस साने, सयानी हैं जानकी जानी भली”” में अनुप्रास अलंकार ‘अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज कली’ में रूपक, ओर उत्प्रेक्षा अलंकार है।
8.गुण – माधुर्य ||

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