कवि परिचय – बिहारी के बाद पद्माकर रीतिकाल के सबसे अधिक लोकप्रिय कवि हुए हैं। इनका
जन्म सन् 1753 में हुआ। ये तैलंग ब्राह्मण थे और बाँदा निवासी मोहनलाल भट्ट के पुत्र थे। बाद में पद्माकर के पिता मोहनलाल भट्ट सागर में बस गए थे। इनके परिवार का वातावरण कवित्वमय था। इनके पिता के अलावा इनके कुल के अन्य अनेक व्यक्ति भी कवि थे। अतः इनके वंश का नाम ही ‘कवीश्वर’ पड़ गया था। पद्माकर जी मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही कविता लिखने लगे थे। ये अनेक राजदरबारों में रहे। बूँदी दरबार की ओर से उन्हें बहुत सम्मान, दान आदि मिला। पन्ना महाराज ने इन्हें बहुत से गाँव दिए । जयपुर नरेश से इन्हें ‘कविराज शिरोमणी’ की उपाधि मिली।
राजाओं की प्रशंसा में उन्होंने ‘हिम्मत बहादुर विरुदावली’ ‘प्रताप सिंह विरुदावली’ और ‘जगत विनोद’ की रचना की। जीवन के अन्तिम समय में इन्हें कुष्ठ रोग हो गया। उससे मुक्ति के लिए गंगाजी की स्तुति में ‘गंगा लहरी’ लिखते हुए यहीं उनका 80 वर्ष की आयु में सन् 1833 में निधन हो गया।
पदमाकर जी के रचित ग्रन्थ है ‘पद्माभरण’, ‘जगद्द्द्विनोद’, ‘आलीशाह प्रकाश’, ‘हिम्मत बहादुर विरुदावली’, – ‘प्रतापसिंह विरुदावली’, ‘प्रबोध पचासा’, ‘गंगा लहरी’ और ‘राम रसायन’ ।
पद्माकर जी का सम्पूर्ण जीवन राजाश्रयों में ठाट-बाट पूर्वक बीता। इन्होंने सजीव मूर्तविधान करने वाली कल्पना के सहारे प्रेम और सौन्दर्य का मार्मिक चित्रण किया है। जगह-जगह लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग द्वारा वे सूक्ष्म से सूक्ष्म भावानुभूतियों को सहज ही मूर्तिमान कर देते हैं। इनका शृंगार सरस एवं सहज अनुभूति से ओतप्रोत है। भाव-कल्पना के आडम्बर में वे उलझे नहीं है। अनुभावों और भावों के चित्रण तो अत्यधिक मर्मस्पर्शी हैं।
पद्माकर का प्रकृति-चित्रण विशेष रूप से षट् ऋतु वर्णन बहुत प्रसिद्ध है। इनके ऋतु वर्णन में जीवंतता और चित्रात्मकता के दर्शन होते हैं। अनुप्रास द्वारा ध्वनिचित्र खड़ा करने में ये अद्वितीय हैं। इनमें बिहारी सा वाग्वैग्ध एवं मतिराम की सी भाषा की स्वाभाविक प्रवाहमयता के दर्शन होते हैं। इनकी भाषा में लाक्षणिकता का भी सुन्दर पुट है। सूक्तियों में तो इनकी समता का रीतिकालीन शायद ही कोई कवि है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनकी भाषागत शक्ति और अनेक रूपता की तुलना तुलसीदास की भाषागत विविधता से की है। यह उनके काव्य की बहुत बड़ी शक्ति की ओर संकेत करता है।