MP Board Solution For Class 8 Hindi Sugam Bharti Chapter 7 हम भी सीखें

MP Board Solution For Class 8 Hindi Sugam Bharti Chapter 4 सबके चेहरे खिल उठे

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प्रश्न-अभ्यास

अनुभव विस्तार

प्रश्न 1♦ वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(क) सही जोड़ी बनाइए
(अ) सूरज हमें रोशनी देता – 1♦ निर्मल जल दिन-रात बहाते
(ब) बिन अभिमान पेड़ देते हैं – 2♦ अन्न उगाती धरती प्यारी
(स) गहरी नदियाँ, निर्झर नाले – 3♦ बीज, फल, फूल, ठण्डी छाया
(द) सबका पालन करने वाली – 4♦ तारे शीतलता बरसाते
उत्तर-
(अ) – 1
(ब) – 2
(स) – 3
(द) – 4

(ख) दिए गए विकल्पों से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-
(अ) अपने लिए सभी जीते हैं …………………………………♦ मरना सीखें । (औरों के हित, दूसरों के हित)
(ब) चाँद बाँटता …………………………………♦ सबको, बादल वर्षा जल दे जाते । (अमृत, चाँदनी)
(स) ऊँचे-नीचे …………………………………♦ ही तो, इन सोतों के जनक कहाते । (पहाड़, पर्वत)
(द) ऐसे ही त्यागी बनकर हम, बूंद-बूंद कर …………………………………♦ सीखें । (घटना, झरना । )
उत्तर- (अ) औरों के हित,
(ब) अमृत,
(स) पर्वत,
(द) झरना ।

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प्रश्न 2♦ अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(अ) कुदरत हमें क्या सिखाती है?
(ब) तारे हमें क्या देते हैं?
(स) धरती क्या कार्य करती है?
उत्तर-
(अ) कुदरत हमें परोपकार करना सिखाती है ।
(ब) तारे हमें शीतलता देते हैं ।
(स) धरती सबका पालन-पोषण करती है ।

प्रश्न 3♦ लघु उत्तरीय प्रश्न

(अ) पर्वतों को सोतों का जनक क्यों कहा गया है?
उत्तर-पर्वतों से बड़ी-बड़ी गहरी नदियाँ निकलती हैं । पर्वतों से कई प्रकार के छोटे-बड़े झरने निकलते हैं । यही नहीं पर्वतों से ही कई प्रकार के छोटे-बड़े नाले निकलते हैं । इन नदियों, झरनों और नालों में रात-दिन स्वच्छ जल बहता रहता है । इस प्रकार पर्वतों से नदियों, झरनों और नालों के निकलने के कारण पर्वतों को इनका जनक कहा गया है ।

(ब) पेड़ों को दधीचि क्यों माना गया है?
उत्तर-पेड़ हर युग में अपना सब कुछ न्यौछावर परोपकार के लिए करते रहते हैं । चाहे कोई मौसम अर्थात् कठिन समय क्यों न हो, वे परोपकार करने से पीछे नहीं हटते हैं । चूँकि इनका त्याग – बलिदान महर्षि दधीचि के ही समान होता है । इसलिए उन्हें महर्षि दधीचि माना गया है ।

(स) जुगनू से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर-यद्यपि जुगनू आकर-प्रकार में बहुत ही छोटा होता है । फिर भी हमें रोशनी थोड़ा-थोड़ा करके ही सही, देने से कभी पीछे नहीं हटता है । इस प्रकार वह अंधकार को दूर करके हमें प्रकाश देने में लगा रहता है । फलस्वरूप हमें उससे यह सीख मिलती है कि परोपकार करने के लिए बड़े-छोटे का महत्त्व नहीं होता है । दूसरी बात यह कि हमें जितना भी हो सके, परोपकार करते ही रहना चाहिए ।

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भाषा की बात

प्रश्न 1♦बोलिए और लिखिएकुदरत, अमृत, दधीचि, निर्मल, पर्वत, त्यागी ।
उत्तर-कुदरत, अमृत, दधीचि, निर्मल, त्यागी ।

प्रश्न 2♦ सही वर्तनी वाले शब्दों पर गोला लगाइए
1♦ सिखती, सखाती, सिखाती, सीखाति
2♦ वरषा, वरीषा, वर्षा, वार्ष
3♦ जुगनू, जुगन, जुगुन, जूगनू,
4♦ अंधकर, अंधाकार, अंधकार, अधंकारा ।
उत्तर- सही वर्तनी
1♦ सिखाती,
2♦ वर्षा,
3♦ जुगनू,
4♦ अंधकार ।

प्रश्न 3♦ निम्नलिखित शब्दों में उचित स्थान पर अनुनासिक के चिह्न () का प्रयोग कीजिए

माग, टाग, जाच, तागा, ऊट, नदिया, बाटना ।

उत्तर- माँग, टाँग, जाँच, ताँगा, ऊँट, नदियाँ, बाँटना ।

प्रश्न 4♦ कोष्ठक में दिए गए शब्द की आवृत्ति से शब्द बनाकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
…………………………… चलता भैया । (आगे)
…………………………… आई गया । (पीछे)
…………………………… लो घास खिलाई । (हरी)
…………………………… उसने वह खाई । (खुशी)
उत्तर- आगे-आगे – चलता भैया ।
पीछे-पीछे – आई गैया ।
हरी-हरी – लो घास खिलाई ।
खुशी-खुशी – उसने वह खाई ।

प्रश्न 5♦ निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिएअग्रज, सुगंध, आदि, आदान ।
उत्तर- शब्द – विपरीतार्थी शब्द
अग्रज – अनुज
सुगंध – दुर्गंध
आदि – अंत
आदान – प्रदान

प्रश्न 6♦ निम्नलिखित शब्दों में ‘अभि’ उपसर्ग का प्रयोग करते हुए नए शब्द बनाइए-
ज्ञान, नंदन, यान, रूचि, नेता, मत
उत्तर- ज्ञान = ज्ञानवान
नंदन =नंदनवन
रूचि =रूचिकर
नेता =नेतागण
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♦ प्रमुख पद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1♦ कुदरत हमको रोज सिखाती, जग-हित में कुछ करना सीखें ।
अपने लिए सभी जीते हैं, औरों के हित मरना सीखें ।

शब्दार्थ-कुदरत-प्रकृति । जगह-हित-संसार की भलाई । औरों-दूसरों । हित के लिए ।

संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) के भाग-8 के पाठ-7 ‘हम भी सीखें से ली गई हैं । इन पंक्तियों के कवि श्री गोपाल कृष्ण कौल हैं ।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति से प्रेरणा लेने का उपदेश देते हुए कहा है कि

व्याख्या-प्रकृति हमें यह रोज-ही-रोज पाठ पढ़ाती रहती है कि हम संसार में एक खास उद्देश्य से आए हैं । वह यह कि हम इस संसार के लिए कुछ करना सीखें । यह तो हम जानते हैं कि अपनी भलाई के लिए तो सभी कछ-न-कछ करते रहते हैं । लेकिन दूसरों की भलाई के लिए शायद ही कोई कुछ करता है । इसलिए हमें प्रकृति की तरह दूसरों की भलाई के लिए अपने जीवन को लगाना चाहिए ।

2♦ सूरज हमें रोशनी देता, तारे शीतलता बरसाते,
चाँद बाँटता अमृत सबको, बादल वर्षा-जल दे जाते ।
जुगनू ज्यों थोड़ा-थोड़ा ही, अंधकार हम हरना सीखें ।

शब्दार्थ-रोशनी-प्रकाश । शीतलता-ठंढ़क, आनंद । संदर्भ-पूर्ववत् ।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सूरज, तारे, चाँद, बादल और जुगनू से परोपकार करने की प्रेरणा लेने की सीख देते हुए कहा है कि-

व्याख्या-सूरज हमें रोशनी (प्रकाश) देकर जीवन प्रदान करता है, तो तारे हमें शीतलता प्रदान करते हैं । इसी प्रकार चाँद अपनी किरणों से हमें अमृत प्रदान करता है, तो बादल जल की बरसा कर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं । जुगनू भले ही थोड़ी-थोड़ी और कहीं-कहीं रोशनी करता है, फिर भी वह अंधकार को दूर करने में लगा ही रहता है । इस प्रकार प्रकृति के इन स्वरूपों से प्रेरणा लेकर हमें भी परोपकार करना चाहिए ।

3♦ बिन अभिमान पेड़ देते हैं, बीज, फूल, फल ठण्डी छाया ।
ये दधीचि बनकर हर युग में, न्यौछावर कर देते काया । ।
मौसम चाहे कैसा भी हो, तरु की तरह निखरना सीखें ।

शब्दार्थ-अभिमान-घमंड । बिन-बिना, अकारण । न्यौछावर -त्याग । काया-शरीर । एक पौराणिक कथा के अनुसार दधीचि ऋषि ने अस्त्र बनाने के लिए अपनी हड्डियाँ तक देवताओं को दान कर दी थीं । इन हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे इंद्र ने राक्षसों को परास्त किया ।

संदर्भ-पूर्ववत् ।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति की ही बिना किसी घमंड करके परोपकार करने की सीख देते हुए कहा है कि

व्याख्या-हम यह रोज ही देखते हैं कि पेड़-पौधे बिना किसी घमंड के ही हमें बीज, फूल और फल देते रहते हैं । यही नहीं वे बड़ी सुखद ठंडी छाया भी हमें देते रहते हैं । इसी प्रकार वे महर्षि दधीचि की तरह हरेक समय में अपना सब कुछ परोपकार में लगाते रहते हैं । मौसम चाहे जो कुछ भी बुरा और खराब क्यों न हो हमें तो पेड़ की तरह ही परोपकार करना नहीं भूलना चाहिए ।


4♦ गहरी नदियाँ, निर्झर, नाले, निर्मल जल दिन-रात बहाते ।
ऊँचे-नीचे पर्वत ही तो, इन सातों के जनक कहाते ।
ऐसे ही त्यागी बनकर हम, बूंद-बूंद कर झरना सीखें ।

शब्दार्थ-निर्झर-झरने । निर्मल-स्वच्छ । स्रोतों-झरनों । जनक-पिता, जन्म देने वाला ।

संदर्भ-पूर्ववत् ।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गहरी नदियों, नालों और झरनों के त्याग को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-बड़ी-बड़ी नदियाँ, नाले और झरने रात-दिन दूसरों के लिए ही साफ और सुंदर जल बहाते रहते हैं । इनको जन्म देने वाले बड़े-बड़े ऊँचे-ऊँचे पर्वत ही तो हैं । इनकी तरह त्यागी-बलिदानी बनकर हम दूसरों को सुख और जीवन देने के लिए अपने जीवन-रस की एक-एक बूँद को टपकाते रहना चाहिए ।

5♦ सबका पालन करने वाली, अन्न उगाती धरती प्यारी ।
उथल-पुथल खुद ही सह लेती, महकाती जीवन फुलवारी ।
जीवन देती प्राणवायु बन, चारों ओर विचरना सीखें । ।

शब्दार्थ-उगाती-पैदा करती । उथल-पुथल-उलट-पुलट,♦ हेर-फेर । महकाती-सुगंध देती । प्राणवायु-संजीवनी । विचरना-घूमना, फिरना ।

संदर्भ-पूर्ववत् ।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने धरती को माँ के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा है कि-

व्याख्या-धरती सचमुच में प्यारी माँ की तरह है । यह सबका पालन-पोषण करने के लिए ही तरह-तरह के अनाज को पैदा करती है । जब कभी कोई उलट-फेर अर्थात् कठिन और दुखद घटना होती है, उसे यह स्वयं ही सह लेती है । लेकिन सबके जीवन की फुलवारी को सुगंधित करने से नहीं रुकती है । इस प्रकार यह सबको हमेशा ही संजीवनी देती रहती है । हमें चारों ओर स्वतंत्र रूप से विचरने-घूमने की शिक्षा इससे अवश्य लेनी चाहिए ।

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