MP Board solution for Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 2 नर से नारायण (निबन्ध, बाबू गुलाबराय)
नर से नारायण पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न
नर से नारायण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 .
त्राहि-त्राहि क्यों मची हुई थी? (M . P . 2009, 2012)
उत्तर:
अवर्षा के कारण सूखे की स्थिति हो गई थी, इसीलिए त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।।
प्रश्न 2 .
बच्चे क्यों प्रसन्न थे?
उत्तर:
लेखक के घर के पीछे वर्षा का पानी भर गया था और बच्चे उस घर की गंगा में कागज की नावें तैराने के कारण प्रसन्न थे ।।
प्रश्न 3 .
लेखक ने किन परिस्थितियों में स्वयं को नारायण कहा है?
उत्तर:
नारायण का निवास स्थान जल में है और उसका घर भी वर्षा के कारण जल में डूबा हुआ था, ऐसी स्थिति में लेखक स्वयं को नारायण समझने लगा था ।।
प्रश्न 4 .
लेखक ने अपने को अनंत का उपासक क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक सीमाओं को क्षुद्र समझता था अतः उसने अपने घर के चारों ओर दीवार नहीं बनाई थी ।। इसी कारण उसने स्वयं को अनंत का उपासक कहा है ।।
प्रश्न 5 .
बाईबल के किस आदर्श का उल्लेख किया है?
उत्तर:
दान गुप्त होना चाहिए ।। एक हाथ से दान देते समय दूसरे हाथ को भी पता नहीं होना चाहिए ।।
प्रश्न 6 .
नाइग्राफाल सा किसे कहा गया है?
उत्तर:
रोशनदानों से तहखाने में गिरते पानी को नाइग्रा फाल कहा गया है ।।
नर से नारायण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 .
वर्षा न होने के कारण लेखक ने अपनी वेदना को किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
ज्वार की पत्तियाँ ऐंठ-ऐंठकर बत्तियाँ बन गई थीं और नए छोटे-छोटे पौधे मुरझाने को विवश हो रहे थे ।। वर्षा न होने के कारण लेखक निराश था क्योंकि उसकी गाढ़ी कमाई के बीस रुपये बरबाद हो रहे थे क्योंकि इन रुपयों से उसने खेत में चरी बो रखी थी ।। वर्षा नहीं होने के कारण वे भी मुरझाने लगे थे ।।
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प्रश्न 2 .
भीषण गर्मी के बाद प्रथम वर्षा के सुखद प्रभाव का वर्णन कीजिए ।।
उत्तर:
भीषण गर्मी के बाद प्रथम वर्षा की बूंदों से मनुष्य का मन प्रसन्न हो उठता है ।। वह वर्षा की छोटी-छोटी बूंदों के सुख देने वाले शीतल स्पर्श से पुलकित हो जाता है ।। सड़कें धुलकर साफ़-सुथरी और चिकनी हो जाती हैं ।। चारों ओर प्रकृति की छटा दर्शनीय हो जाती है ।। खेतों में हरियाली छा जाती है ।।
प्रश्न 3 .
‘दिग्दाहों से धूम उठे या जलधर उठे क्षितिज तट के’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर:
भीषण गर्मी के कारण दिशाओं के जलने के कारण धुआँ उठा अर्थात् क्षितिज के किनारों पर बादल उठे ।। लेखक इस बात का निर्णय नहीं कर पा रहा है कि क्षितिज पर भीषण गर्मी से जलने के कारण धुआँ उठ रहा है या क्षितिज से बादल उठ रहे हैं ।।
प्रश्न 4 .
लेखक का आनंद आशंका में क्यों बदल गया? (M . P . 2011)
उत्तर:
लेखक का आनंद आशंका में इसलिए बदल गया क्योंकि उसके मकान के पीछे एक फुट पानी भर गया था और वह धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा था ।। पानी बढ़ने के साथ-साथ लेखक की आशंका भी बढ़ती जा रही थी ।।
प्रश्न 5 .
जब बिजली चली गई तब लेखक को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना है? (M . P . 2011)
उत्तर:
बिजली के गुल हो जाने पर चारों तरफ घुप अँधेरा हो गया ।। सारा घर गहन अंधकार में डूब गया ।। हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता था ।। सर से सर टकराने की स्थिति आ गई ।। लालटेन ढूँढ़ी गई तो उसमें तेल नहीं था ।। घर में माचिस तक न मिली ।। एक टूटी-फूटी टॉर्च भी थी जिसे ढूँढ़ना कठिन था ।। रोशनदानों से तहखाने में पानी गिर रहा था ।। जैसे-तैसे दीपक जलाया गया लेकिन वह तेज हवा के कारण बुझ गया ।। लेखक के नौकर पड़ोस से लालटेन माँगकर लाए ।। इस प्रकार जैसे ही रोशनी की व्यवस्था हुई सब लोग घर के भीतर बैठ गए ।।
प्रश्न 6 .
बाढ़-पीड़ितों की सहायता किस प्रकार की गई?
उत्तर:
बाढ़-पीड़ितों को शिक्षण संस्थाओं में आश्रय दिया गया ।। लोगों ने अन्न, वस्त्रादि देकर उनकी प्राथमिक आवश्यकताएँ पूरी की ।। उनके घरों के पास वाढ़ के पानी को निकाला गया और मिट्टी डाली गई ।।
नर से नारायण भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न 1 .
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव विस्तार कीजिए –
प्रश्न 1 .
‘नारासु अयनं यस्य सः नारायणः’ ।।
उत्तर:
जिसका घर नार (जल) में हो वही नारायण है ।। नारायण पोषण करने वाले हैं ।। वर्षा का जल सृष्टि का पोषणकर्ता है ।। नारायण का घर समुद्र में है जहाँ चारों ओर पानी ही पानी है ।। वर्षा से उत्पन्न जलभराव के कारण लेखक के घर के चारों ओर पानी भर गया है इसलिए वह बिना किसी करनी के ही स्वयं को नारायण समझने लगा ।।
प्रश्न 2 .
दियासलाई ज्योतिस्वरूप परमात्मा बन गई ।।
उत्तर:
एकाएक बिजली के गुल होने से गहन अंधकार छा गया ।। अंधकार में दियासलाई को ढूँढ़ा गया ।। लेकिन अँधेरे में दियासलाई का मिलना एक टेढ़ी खीर थी ।। दियासलाई का मिलना ऐसा था जैसे ज्योतिस्वरूप एवं ज्योतिस्रोत ईश्वर का मिलना ।। इस प्रकार दियासलाई का मिलना परमात्मा के मिलने के समान हो गया था ।। उस समय घरवालों के लिए दियासलाई ज्योतिस्वरूप परमात्मा के समान बन गई थी ।।
नर से नारायण भाषा-अनुशीलन
प्रश्न 1 .
निम्नलिखित का समास-विग्रह कर समास का नाम लिखिए –
मन-मयूर, श्रेय-प्रेय, चिंताग्रस्त, नयनाभिराम, जल-प्लावन, सायंकाल, जीव-दया, सुमनवर्षा, जलबाधा, स्नेहशून्य ।।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 2 नर से नारायण
प्रश्न 2 .
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
अंक, अर्थ, उत्तर, गुरु, फल ।।
उदाहरणः
स्नेह-शून्य दीपक कब तक जल पाएगा?
दीनों के प्रति स्नेह-शून्य व्यवहार मत करो ।।
उत्तर:
अंक – इस नाटक में कुल पाँच अंक हैं ।। बच्चे को रोता देख माँ ने उसे अंक में उठा लिया ।। रमेश ने परीक्षा में बहुत कम अंक प्राप्त किए हैं ।।
अर्थ – भाई-भाई के बीच में बोलने का तुम्हारा अर्थ क्या है? आजकल तो अर्थ के बिना कोई नहीं पूछता ।।
उत्तर – हिमालय पर्वत उत्तर दिशा में है ।। मैंने उत्तर लिख दिया है ।।
गुरु – बच्चो! गुरुजी की आज्ञा का पालन करो ।। मजदूरनी गुरु हथौड़ा हाथ में लिये पत्थर तोड़ रही है ।।
फल – बुरे कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है ।। आम का फल बड़ा रसीला होता है ।।
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प्रश्न 3 .
निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
तन-मन, श्रेय-प्रेय, हँसता-खेलता, टूटी-फूटी, बचा-खुचा ।।
उत्तर:
तन-मन – मैंने उस असहाय बीमार की तन-मन से सेवा की ।।
श्रेय-प्रेय – लेखक आनंद और कर्त्तव्यं तथा श्रेय-प्रेय का समन्वय करने कॉलेज भी गया ।।
हँसता-खेलता – बच्चा हँसता-खेलता ही प्रिय लगता है ।।
टूटी-फूटी – अंग्रेज टूटी-फूटी हिंदी में भी बात कर लेते हैं ।।
बचा-खुचा – नौकर ने बचा-खुचा खाना भिखारी को दे दिया ।।
प्रश्न 4 .
निम्नलिखित भिन्नार्थी शब्दों के पृथक-पृथक वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
वात-बात, वन-बन, अपेक्षा-उपेक्षा, चिंता-चिता, ओर-और, तरणी-तरणि, सुत-सूत, क्षात्र-छात्र ।। (M . P . 2010)
उत्तर:
वात – वह वात रोग से पीड़ित है ।।
बात – रोगी से अधिक बात मत कीजिए ।।
वन – राम वन गए ।।
बन – बात बन गई है ।।
अपेक्षा – सोहन से परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने की अपेक्षा की जाती है ।।
उपेक्षा – हमें अपने माता-पिता की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।।
चिंता – पुत्र को बीमार देखकर माँ का मनचिंता से अनायास भर उठा ।।
चिता – चिता की अग्नि धधक उठी ।।
ओर – सूर्य पूर्व दिशा की ओर से उगता है ।।
और – धर्म और कर्म ही मनुष्य के साथ जाते हैं ।।
तरणी – भक्ति रूपी तरणी से भवसागर पार किया जा सकता है ।।
तरणि – तरणि का तेज देखते ही बनता है! (M . P . 2010)
सुत – मेरा ही सुत मुझे आँखें दिखा रहा है ।।
सूत – गाँधीजी सूत कातते थे ।। (M . P . 2010)
क्षात्र – क्षात्र को खुला मत छोड़ना ।।
छात्र – यह छात्र बहुत परिश्रमी है ।।
प्रश्न 5 .
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
कान में भनक पड़ना, त्राहि-त्राहि मचना, दो-चार आँसू बहाना, घर फूंक तमाशा देखना, भगीरथ प्रयत्न करना ।।
उत्तर:
कान में भनक पड़ना – (निंदा, बुराई अथवा षड्यंत्र की बात सुनने में आना) आतंकी योजना की कान में भनक पड़ने ही पुलिस सजग हो गई ।।
त्राहि-त्राहि मचना – (हाहाकार होना) महँगाई से सारे देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है ।। (M . P . 2009)
दो-चार आँसू बहाना – (दख प्रकट करना) महँगाई के नाम पर नेतागण दो-चार आँसू बहा लेते हैं ।।
घर फूंक तमाशा देखना – (हानि उठाकर प्रसन्न होना) दीपावली पर पटाखे चलाना घर फूंक तमाशा देखने के बराबर है ।।
भगीरथ प्रयत्न करना – (अत्यधिक प्रयास करना) आई . ए . एस . बनने के लिए भगीरथ प्रयत्न करना पड़ता है ।।
प्रश्न 6 .
निम्नलिखित लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
का वर्षा जब कृषि सुखानी ।।
सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा ।।
उत्तर:
जब आतंकवादी शहर में विस्फोट करने में सफल हो गए तब पुलिस पहुँची ।। टीक ही कहा गया है-का वर्षा जब कृषि सुखानी ।।
लेखक के घर के चारों ओर सिमिटि-सिमिटि जब भरहिं तलाबा वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी ।।
प्रश्न 7 .
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार रूपांतरित कीजिए –
बच्चे भी घर की गंगाजी में कागज की नावें तैराकर खुश हो रहे थे ।। (संयुक्त वाक्य)
मेरी सौंदर्योपासना अविचलित रही, क्योंकि ऐसा कई बार हो चुका था ।। (सरल वाक्य)
सुबह उठकर जलप्लावन का व्यापक एवं भयंकर दृश्य देखा ।। (मिश्र वाक्य)
उत्तर:
बच्चे भी घर की गंगाजी में कागज की नावें तैरा रहे थे और खुश हो रहे थे ।।
ऐसा कई बार होने के कारण मेरी सौंदर्योपासना अविचलित रही ।।
जो सुबह उठकर जलप्लावन का दृश्य देखा, वह व्यापक एवं भयंकर था ।।
या
जब सुबह उठा तब जलप्लावन का व्यापक एवं भयंकर दृश्य देखा ।।
नर से नारायण योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1 .
यदि आपके गाँव या नगर में बाढ़ आ जाए तो आप बाढ़ पीड़ितों के लिए क्या-क्या उपाय करेंगे? लिपिबद्ध कीजिए ।।
उत्तर:
यदि हमारे गाँव या नगर में बाढ़ आ जाए तो हम बाढ़ पीड़ितों को उस गाँव या नगर के सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाएँगे और उनकी अन्न, वस्त्र और औषधियों से खूब सहायता करेंगे ।। उनके घरों के पास से पानी निकालने में प्रशासन की सहायता करेंगे ।। उनके पशुओं के लिए चारे का प्रबंध करेंगे ।। पशुओं को भी सुरक्षित स्थानों पर ले जाएँगे ।।
प्रश्न 2 .
प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त कर कक्षा में चर्चा कीजिए ।।
उत्तर:
बाढ़, भूकंप, सूखा आदि प्राकृतिक आपदाएँ हैं ।। छात्र इनके संबंध में स्वयं जानकारी प्राप्त कर चर्चा करें ।।
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प्रश्न 3 .
‘वर्षा-ऋतु’ अथवा ‘जल ही जीवन है’ विषय पर 150 शब्दों में निबंध लिखिए ।। (M . P . 2011)
उत्तर:
छात्र स्वयं लिखें ।। निबन्ध खण्ड में देखें ।।
नर से नारायण परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
I . वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1 .
‘नर से नारायण’ निबंध का लेखक कौन है?
(क) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(ग) बाबू गुलाबराय
(घ) आचार्य नरेंद्र देव
उत्तर:
(ग) बाबू गुलाबराय ।।
प्रश्न 2 .
निबंध में किस ऋतु के प्रभाव का वर्णन किया गया है?
(क) ग्रीष्म ऋतु
(ख) वर्षा ऋतु
(ग) वसंत ऋतु
(घ) शरद ऋतु
उत्तर:
(ख) वर्षा ऋतु ।।
प्रश्न 3 .
स्वयं को नारायण कौन समझने लगा?
(क) बनर्जी साहब
(ख) रणधीर जी
(ग) मंगलदेव जी
(घ) लेखक बाबू गुलाबराय
उत्तर:
(घ) लेखक बाबू गुलाबराय ।।
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प्रश्न 4 .
लेखक ने बनर्जी साहब का निमंत्रण कब स्वीकार किया? (M . P . 2009)
(क) जब बिजली गुल हो गई
(ख) जब बरामदे और शयनागार का फर्श बैठ गया
(ग) जब तहखाने में साँप आ गया
(घ) जब उनका घर जलमग्न हो गया
उत्तर:
(ख) जब बरामदे और शयनागार का फर्श बैठ गया ।।
प्रश्न 5 .
लेखक ने किस काम को संदल घिसने की भाँति सरदर्द वाला बताया है?
(क) लालटेन ढूँढ़ने के काम को
(ख) दियासलाई ढूँढ़ने के काम को
(ग) टॉर्च ढूँढ़ने के काम को
(घ) दीपक जलाने के काम को
उत्तर:
(ग) टॉर्च ढूँढ़ने के काम को ।।
प्रश्न 6 .
लेखक ने अपने किस पड़ोसी की व्यवहारकुशलता की प्रशंसा की है?
(क) बनर्जी साहब की
(ख) मंगलदेव की
(ग) काछी-कुम्हार की
(घ) रणधीर की
उत्तर:
(क) बनर्जी साहब की
प्रश्न 7 .
लेखक ने वरुण-रस किसे कहा है?
(क) वर्षा के जल को
(ख) कुएँ के पानी को
(ग) तालाब के जल को
(घ) समुद्र के जल को
उत्तर:
(क) वर्षा के जल को ।।
प्रश्न 8 .
लेखक ने किस रस के लौकिक अनुभव की पुनरावृत्ति न कराने की प्रार्थनकी?
(क) रौद्र रस की
(ख) करुण रस की
(ग) शांत रस की
(घ) वरुण रस की
उत्तर:
(घ) वरुण रस की ।।
II . रिक्त स्थानों की पूर्ति करें –
‘नर से नारायण’ निबन्ध के लेखक ……… . हैं ।। (गुलाबराय रामचन्द्र शुक्ल) (M . P . 2009)
लेखक गुलाबराय ……… के भूतपूर्व सदस्य थे ।। (जीव-दया प्रचारिणी सभा/महासभा)
……… . के महीने में पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।। (अगस्त सितम्बर)
लेखक के माली का नाम ……… . था ।। (रविदेव/मंगलदेव)
लेखक के पड़ोसी का नाम ……… था ।। (श्री बनर्जी साहब/श्री चटर्जी साहब)
उत्तर:
गुलाबराय
जीवन-दया प्रचारिणी सभा
सितम्बर
मंगलदेव
श्री बनर्जी साहब ।।
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III . निम्नलिखित कथन के लिए सही विकल्प चुनिए –
प्रश्न 1 .
‘नर से नारायण’ निबन्ध में लेखक ने बीस रुपये किस पर खर्च किए थे?
(क) लालटेन खरीदने में
(ख) फसल बोने में
(ग) तहखाने का रोशनदान बनवाने में
(घ) माली से पौधे लगवाने में
उत्तर:
(ख) फसल बोने में
IV . निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –
‘नर से नारायण’ शीर्षक निबन्ध की भाषा संस्कृत प्रधान है ।।
लेखक को अपने तहखाने के रोशनदानों पर काफी गर्व था ।।
बिजली गुल होते ही सभी घर से बाहर निकल पड़े ।।
लालटेन में तेल भरा हुआ था ।।
लेखक वर्षा के सौंदर्य रूप से अधिक प्रभावित था ।।
‘नर से नारायण’ निबंध लेखक बाबू गुलाबराय हैं ।। (M . P . 2012)
उत्तर:
सत्य
सत्य
असत्य
असत्य
सत्य
सत्य ।।
V . निम्न के सही जोड़े मिलाइए –
प्रश्न 1 .
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 2 नर से नारायण
उत्तर:
VI . निम्न प्रश्नों के एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1 .
श्री बनर्जी साहब कौन थे?
उत्तर:
श्री बनर्जी साहब लेखक गुलाबराय के पड़ोसी थे ।।
प्रश्न 2 .
त्राहि-त्राहि क्यों मची हुई थी? (M . P . Board 2009)
उत्तर:
अवर्षा की स्थिति के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।।
प्रश्न 3 .
लेखक ने खेत में क्या बो रखी थी?
उत्तर:
लेखक ने खेत में चरी बो रखी थी ।।
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प्रश्न 4 .
लेखक को कहाँ पर आश्रय मिला था?
उत्तर:
लेखक को जैन बोर्डिंग में आश्रय मिला था ।।
प्रश्न 5 .
लेखक को तहखाने के रोशनदानों पर क्यों गर्व था?
उत्तर:
क्योंकि लेखक सायंकाल को भी वहाँ बैठकर लिख-पढ़ सकता था ।।
नर से नारायण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 .
लेखक पहले किस स्थिति से दुखी था?
उत्तर:
लेखक पहले अवर्षा की स्थिति से दुखी था ।।
प्रश्न 2 .
गरीब किसानों की भस्म करने वाली आहों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गरीब किसानों की भस्म करने वाली आहों के प्रभाव से आकाश में बादल – बनते दिखाई देने लगे ।।
प्रश्न 3 .
लेखक को स्फूर्ति क्यों आई और उसने क्या किया?
उत्तर:
वर्षा के कारण लेखक के शरीर में स्फूर्ति आई और वह लिखने बैठ गया ।।
प्रश्न 4 .
लेखक ने बेरोजगारी की समस्या पर क्या चुटकी ली है?
उत्तर:
लेखक ने बेरोजगारी की समस्या पर चुटकी लेते हुए कहा है कि आजकल के युग में बेकारों की अर्जियों से दफ्तर बन जाते हैं ।।
प्रश्न 5 .
अगस्त्य ऋषि का यांत्रिक अवतार किसे कहा गया है?
उत्तर:
फायर बिग्रेड को अगस्त्य ऋषि का यांत्रिक अवतार कहा गया है ।।
प्रश्न 6 .
त्राहि-त्राहि क्यों मची हुई थी? (M . P . 2009)
उत्तर:
सितम्बर महीने तक बारीश न होने से त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।।
प्रश्न 7 .
लेखक को तहखाने में बने रोशनदानों पर क्यों गर्व था?
उत्तर:
लेखक को तहखाने में बने रोशनदानों पर इसलिए गर्व था कि उनसे प्रकाश के साथ-साथ वायु का भी आर-पार संचार होता था ।।
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प्रश्न 8 .
लेखक को जल-बाधा से कितने दिन बाद मुक्ति मिली?
उत्तर:
लेखक को पूरे सप्ताह अर्थात् सात दिन बाद जल-बाधा से मुक्ति मिली ।।
नर से नारायण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 .
लेखक ने वर्षा के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद कैसे लिया?
उत्तर:
लेखक ने वर्षा के दौरान कमरे से बाहर जाकर मेघाच्छादित गगन मंडल की शोभा निहारकर, बगीचे में जाकर शेफाली के गिरते फूलों को देखते हुए तथा धोए-धोए पत्तों वाली हरित-ललित-यौवनभरी लहलहाती लताओं के सौंदर्य का अपने नेत्रों से पान करके प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया ।।
प्रश्न 2 .
लेखक के मकान को वर्षा ने क्या-क्या हानि पहुँचाई?
उत्तर:
लेखक के मकान के तहखाने में पानी भर गया ।। कमरों तथा बरामदे के फर्श बैठ गए और भैंस बाँधने का छप्पर जलमग्न हो गया ।। उसके मकान के चारों ओर पानी भर गया ।।
प्रश्न 3 .
बाढ़ का प्रभाव किन-किन स्थानों पर हुआ?
उत्तर:
बाढ़ का प्रभाव लेखक के मकान और उसके पड़ोसियों पर भी पड़ा ।। जेल के पास नाव चलने की नौबत आ गई ।। सेंट जोंस गर्ल्स स्कूल जलमग्न हो गया ।। गाँव के गाँव जलमग्न हो गए ।। काफी लोगों की मृत्यु हो गई ।। जो लोग घर से बाहर गए थे उनके लिए लौटना मुश्किल हो गया ।। आगरा फोर्ट के पास सड़क फट गई ।। बिजली के खंभे उखड़ गए ।। इस प्रकार कई स्थान बाढ़ की चपेट में बुरी तरह आ गए ।।
प्रश्न 4 .
लेखक स्वयं को कब नारायण समझने लगा था?
उत्तर:
लेखक यह जानता था कि जल ही नारायण का निवास स्थान है ।। चूंकि अत्यधिक वर्षा के कारण उसके घर के चारों ओर तथा तहखाने में पानी भर गया था ।। इस दशा को देखकर वह स्वयं को नारायण समझने लगा था ।।
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प्रश्न 5 .
लेखक अपने घर को मनु की नौका क्यों समझ रहा था?
उत्तर:
चूँकि बारिश बहुत हुई थी ।। उससे लेखक के घर के चारों ओर पानी भर गया ।। इससे सारा घर क्षतिग्रस्त हो गया था ।। इस टूटे-फूटे और जल में डूबते हुए अपने घर को देखकर लेखक उसे मनु की नौका समझ रहा था ।।
नर से नारायण लेखक-परिचय
प्रश्न 1 .
बाबू गुलाबराय का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
बाबू गुलाबराय हिंदी के प्रसिद्ध समालोचक एवं निबंधकार थे ।। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में सन् 1888 ई० में हुआ था ।। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुई जो काफी सुदृढ़ और नियमित थी ।। बाद में वे आगरा विश्वविद्यालय के छात्र हो गए और वहाँ से उन्होंने दर्शनशास्त्र में एम . ए . करने के बाद एल . एल . बी . की परीक्षा उत्तीर्ण की ।। इसके बाद वे छतरपुर के महाराज के निजी सचिव के रूप में कार्य करते रहे ।। इसके बाद आप एक रियासत के दीवान रहे और इस पद पर कुशलतापूर्वक कार्य किया ।।
महाराज के निधन के पश्चात् आप आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में अध्यापन-कार्य करने लगे ।। आपने आगरा से निकलने वाले ‘साहित्य-संदेश’ के संपादक के रूप में कार्य करते हुए अपने चिंतन की प्रखरता और गंभीरता से साहित्य जगत् में अपना विशिष्ट स्थान बनाया था ।। उनकी विशिष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी-लिट . की मानद उपाधि से सम्मानित किया था ।। इनका निधन 13 अप्रैल, सन् 1963 ई० में आगरा में हुआ ।।
साहित्यिक विशेषताएँ:
बाबू गुलाबराय का साहित्य विविधताओं से भरा हुआ है ।। उनकी रचनाओं में तर्कपूर्ण विश्लेषण के साथ-साथ भारतीय सिद्धांतों की सूक्ष्म विवेचना मिलती है ।। उन्होंने धर्म, दर्शन एवं साहित्य से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर निबंध लिखे हैं ।। उनके निबंध वर्णनात्मक, विवेचनात्मक और भावात्मक होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिकता से भरपूर हैं ।। उनके निबंधों में गंभीरता के साथ-साथ व्यंग्य और विनोद का पुट भी मिलता है ।। उनकी रचनाओं में एक विचित्र रस है जो पाठक और श्रोता को बाँधे रखता है ।। वे द्विवेदी युग के एक सशक्त एवं परिपक्व गद्यकार हैं ।। द्विवेदी युग में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में गंभीर विवेचन करने वाले विद्वानों में आपका सर्वोच्च स्थान है ।।
रचनाएँ:
बाबू गुलाबराय ने गद्य-साहित्य की अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है ।। उनकी रचनाओं में मुख्य हैं –
काव्य-शास्त्र – नवरस, सिद्धांत और अध्ययन, काव्य के रूप, हिंदी नाट्य-विमर्श ।।
साहित्य का इतिहास – हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास ।।
आलोचना – अध्ययन और आस्वाद, हिंदी काव्य-विमर्श ।।
निबंध-संकलन – फिर निराश क्यों, मेरे निबंध, मनोवैज्ञानिक निबंध, जीवन-रश्मियाँ, व्यंग्य-ठलुआ क्लब, डॉक्टर साहब ।।
जीवनीपरक – मेरी असफलताएँ ।।
भाषा-शैली:
आपकी भाषा-शैली सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक है ।। आपने गंभीर विषयों में संस्कृत प्रधान भाषा का प्रयोग किया है ।। उन्होंने अपनी रचनाओं में अरबी, फारसी, अंग्रेजी का प्रयोग किया है ।। मुहावरों और कहावतों के सटीक प्रयोग करने में आप सिद्धहस्त हैं ।।
महत्त्व:
हिंदी गद्य साहित्य में बाबू गुलाबराय का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।। उन्होंने गद्य साहित्य की अनेक विधाओं की रचना कर, सशक्त और परिपक्व गद्यकार के रूप में अपनी पहचान बनाई ।। उन्होंने हिंदी आलोचना और निबंध के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है ।।
‘नर से नारायण’ पाठ का सारांश ।।
प्रश्न 2 .
बाबू गुलाबराय द्वारा लिखित निबंध ‘नर से नारायण’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।।
उत्तर:
इस निबंध की विषय-वस्तु ‘वर्षा’ केंद्रित है किंतु निबंधकार ने अपने आत्मगत विस्तार में अनेक विषयों का स्पर्श किया है ।। निबंध के प्रारंभ में अवर्षा की स्थिति से प्रभावित प्रकृति की ओर संकेत किया गया है, और बाद में अति वर्षा के कारण घर-गृहस्थी पर पड़ने वाले प्रभाव को व्यक्त किया है ।। सितंबर महीने में सब तरफ पानी का अभाव था लेकिन लेखक ने बीस रुपये व्यय करके खेत में चरी बो दी ।।
पानी की कमी के कारण चरी के नए पौधे सूखने लगे ।। खैर, किसानों की आह से आकाश में बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे ।। आकाश में बादल का छाना क्या था, लेखक का मन प्रफुल्लित हो उठा ।। वह उनकी उपयोगिता की अपेक्षा उनके सौंदर्य से अधिक प्रभावित हुआ ।। वह घर से बाहर निकलकर वर्षा की छोटी-छोटी बूंदों का आनंद लेता हुआ इधर-उधर घूमने लगा ।। वर्षा की छटा और खेती के फलने-फूलने के उत्साह से भरा वह घर लौटा ।।
वर्षा में भीगने के कारण शरीर में स्फूर्ति का संचार हुआ और उससे प्रेरित होकर वह फौरन लिखने बैठ गया ।। कभी बाहर जाकर बादलों से घिरे आकाश का सौंदर्य निहारता तो कभी बगीचे में उगे शेफानी के फूलों ओर लताओं के सौंदर्य पर निगाह डालता ।। सचमुच वह बहुत प्रसन्न था ।। वर्षा लगातार हो रही थी ।। बहुत जल्दी घर के पीछे की ओर एक फुट पानी भर गया था, परंतु लेखक के लिए यह चिंता का विषय नहीं था ।। लेकिन जब घर के चारों ओर पानी भर गया तो उसके मन में आशंका उत्पन्न हो गई कि पानी के तालाब में कहीं बाढ़ आ गई तो? शीघ्र ही पास की जमीन का पानी लेखक की जमीन में आ गया ।।
पानी थोड़ी देर में रोशनदानों के मुँह तक पहुँच गया और पानी घर के अंदर गिरने लगा ।। लेखक को अपने घर के तहखाने के रोशनदानों पर बड़ा गर्व था ।। वह सभी आने वाले के सामने तहखाने में आर-पार वायु संचार की व्यवस्था का और टूटी-फूटी शान और स्वास्थ्य-विज्ञान संबंधी ज्ञान का प्रदर्शन करता था ।। इन्हीं रोशनदानों से तहखाने में पानी के झरने गिरने लगे ।। वर्षा के इस दौर में बिजली चली गई ।। चारों ओर घुप अंधकार हो गया ।। हाथ को हाथ नहीं सूझता था ।। लालटेन की खोज होने लगी ।। अँधेरे के कारण घर में दियासलाई मिलनी भी मुश्किल थी ।। जैसे-तैसे तेलरहि लालटेन मिली ।। एक टूटी-फूटी टॉर्च थी किंतु उसे ढूँढ़ना कठिन था ।। लेखक को लगा कि सेलरों से गिरते निर्झर उसकी मूर्खता की घोषणा कर रहे हों ।। घर के नौकर पड़ोस से लालटेन ले आए और हम सब शांतिपूर्वक घर में बैठ गए ।।
अभी तक लेखक को कोई खास चिंता नहीं थी ।। थोड़ी देर में पास के कमरे से आवाज आई, ‘चलियो’ नौकर ने चिल्लाकर कहा, ‘बाबूजी उधर ही रहना’, जमीन बैठ गई थी तथा फर्श के पत्थर आपस में सर से सर मिलाकर खड़े हो गए थे ।। भैंस का छप्पर भी तालाब बन चुका था ।। लेखक के पड़ोसी ने उनसे कहा कि कोई तकलीफ हो तो इधर आ जाना ।। थोड़ी देर में बरामदे और शयन कक्ष का फर्श भी बैट गया ।। बाद में पड़ोसी के घर में शरण ली ।। उन्होंने भैंस को भी अपने यहाँ आश्रय दिया ।। रात वहीं गुज़री ।। सुबह जब लेखक उठा तो उसे बाढ़ का भयंकर दृश्य दिखाई दिया ।। लेखक करुण हास्य के साथ जल-प्रवाह देखने लगा और स्वयं को कामायनी का मन ही नहीं नारायण समझने लगा ।। इस प्रकार लेखक बिना किए ही नर से नारायण बन गया ।।
उस दिन लेखक को सभी की सहानुभूति मिली ।। वर्षा के बाद घर से पानी निकालने का प्रयास असफल हो गया ।। अगले फायर ब्रिगेड ने पानी निकालने का असफल प्र किया ।। पाँचवें दिन इंजन लगाकर पानी निकाला गया ।। कोठी के चारों ओर मिट्टी डाली गई ।। इस प्रकार पूरे एक सप्ताह बाद जल-बाधा दूर हुई ।। – लेखक के घर का ही यह हाल नहीं था अपितु कई स्थानों पर ऐसा ही दृश्य दिखाई दे रहा था ।। बाढ़ में गाँव के गाँव जलमग्न हो गए ।। अनेक लोग मौत के शिकार हो गए ।। जो लोग घर से बाहर गए हुए थे उनको घर लौटना मुश्किल हो गया ।। सड़कें टूट गईं, पुल बह गए ।। सभी शिक्षा संस्थाओं में बाढ़-पीड़ितों को आश्रय दिया गया ।। सभी बाढ़-पीड़ितों की सहायता कर रहे थे ।। लेखक के परिवार को भी जैन बोर्डिंग में आश्रय मिला ।। लेखक ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह इस बाढ़ की पुनरावृत्ति न कराए ।।
नर से नारायण संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
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प्रश्न 1 .
सितंबर के महीने में, पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।। मैंने भी धर्म-पालन के लिए पास के एक खेत में चरी बो रखी थी ।। ज्वार की पत्तियाँ ऐंठ-ऐंठकर बत्तियाँ बन गई थीं ।। मैं भी जीव-दया प्रचारिणी सभा का भूतपूर्व मेम्बर होने के नाते नौनिहाल, किंतु अब तन-मन मुाए हुए नव-उम्र पौधों की बेकसी पर और अपनी गाढ़ी कमाई के बीस रुपयों की बरबादी पर दो-चार आँसू बहा देता ।। लेकिन उनसे होता क्या? यदि वे रीतिकालीन काव्यों की विरहिणी गोपिकाओं के समान भी होते, जिनसे कि समुद्र का पानी खारा हो गया था, तो भी वे खारा होने के कारण सिंचाई का काम न देते ।। खैर, फिर भी गरीब किसानों की सार को भस्म करने वाली आहों के बादल बनते दिखाई दिए, ‘दिग्दाहों से धूम उठे या जलधर उठे क्षितिज तट के ।।
ऐसा मालूम होने लगा कि अब दीनदयाल के कान में भनक पड़ी और शायद यह न कहना पड़े ‘का वर्षा जब कृषि सुखानी’ ।। ‘धूम-धुआँरे कारे कजरारे’ श्याम घनों को देखकर मेरा ।। मन-मयूर नृत्य करने लगा ।। बादलों की उपयोगिता की अपेक्षा मैं उनके सौन्दर्य से अधिक प्रभावित होता हूँ ।। बाहर घूमता फिरा, नन्हीं-नन्हीं बूंदों के सुखद शीतल स्पर्श से पुलकित हुआ ।। आनंद और कर्त्तव्य तथा श्रेय-प्रेय का समन्वय करने कॉलेज भी गया ।। यद्यपि मेरी सदा छुट्टी-सी रहती है तो भी वर्षा के कारण कॉलेज बंद हो जाने से बालकपन के संस्कारोंवश प्रसन्नता का अनुभव किया ।। धुली-धुलाई सड़कों की स्निग्ध चमकीली छटा तथा चारों ओर के नयनाभिराम छायावादी आर्द्र सौंदर्य का आस्वादन करता हुआ हँसता-खेलता, खेती की ओर हर्ष-पूर्ण दृष्टिपात करता हुआ उमंगभरे हृदय के साथ घर लौटा ।। (Page 5)
शब्दार्थ:
त्राहि-त्राहि करना – किसी आपदा के समय रक्षा के लिए प्रार्थना करना, गुहार लगाना ।।
जीव-दया – जीवों पर दया करना ।।
बेबसी – विवशता ।।
गाढ़ी कमाई – परिश्रम की कमाई ।।
आँसू बहाना – दुख व्यक्त करना ।।
विरहिणी – वियोगिनी ।।
सार – किसी पदार्थ का मुख्य या मूल भाग ।।
दिग्दाह – दिशाओं का जलना ।।
जलघर – बादल ।।
क्षितिज – वह काल्पनिक रेखा जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं ।।
दीनदयाल – ईश्वर, भगवान ।।
कान में भनक पड़ना – जानकारी होना ।।
का वर्षा जब कृषि सुखानी – खेती सूखने पर वर्षा होने का क्या लाभ ।।
श्याम घन – काले बादल ।।
पुलकित – आनंदित होना, प्रसन्न होना ।।
छटा – शोभा ।।
उमंग – उत्साह ।।
स्निग्ध – चिकनी ।।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश बाबू गुलाबराय द्वारा लिखित निबंध ‘नर से नारायण’ से उद्धृत है ।। इस पद में लेखक ने अवर्षा की स्थिति से प्रभावित प्रकृति की ओर संकेत किया है ।। बाद में आकाश में बादल छा जाते हैं ।। लेखक प्रफुल्लित हो जाता है ।। अपनी मनःस्थिति का वर्णन करते हुए वह कहता है –
व्याख्या:
सितंबर महीने तक वर्षा न होने के कारण पानी की कमी के कारण सभी इंद्रदेवता से सूखे से रक्षा करने के लिए गुहार लगा रहे थे ।। लेखक कहता है कि उसने भी धर्म का पालन करने के लिए पास के एक खेत में चरी बो रखी थी ।। पानी की कमी के कारण खेत में खड़ी ज्वार के पौधों की पत्तियाँ सूखकर, ऐंठकर बत्तियों-सी बन गई थीं ।। अर्थात् ज्वार की फसल सूखकर नष्ट हो रही थी ।। लेखक जीवों पर दया करने का प्रचार करने वाली संस्था का भूतपूर्व नौजवान सदस्य था ।। किंतु अब सूखे की स्थिति के कारण खेत में उत्पन्न नए-नए पौधों के तन-मन से मुरझाते जाने की विवशता और अपनी मेहनत से कमाये गए बीस रुपयों के बरबाद होते चले जाने पर आँसू बहाकर दुख व्यक्त कर रहा था ।।
अर्थात् लेखक ने अपनी मेहनत की कमाई के बीस रुपयों से चरी के बीज खेत में बोए थे ।। उनमें अंकुर फूटकर पौंधे बन गए थे किंतु पानी के अभाव के कारण चरी के वे नए पौधे सूखने लगे थे ।। लेखक को अपने बीस रुपये बरबाद होने का दुख हो रहा था ।। परंतु उसके दुख व्यक्त करने से कुछ होने वाला नहीं था ।। यदि उसके आँसू रीतिकालीन काव्यों की वियोगिनी नायिकाओं की भाँति भी होते, जिनके आँसुओं के कारण समुद्र का पानी खारा हो गया था, तो भी आँसुओं के खारा होने के कारण सिंचाई के काम न आते ।। इस प्रकार रीतिकालीन कवियों ने वियोगिनी नायिकाओं के आँसुओं का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है ।। उनके आँसुओं के समुद्र में मिलने के कारण समुद्र का पानी खारा हो गया था ।।
फिर भी गरीब किसानों की किसी पदार्थ को भस्म करने वाली आहों (कराहने की आवाज) से आकाश में बादल छाते दिखाई पड़ने लगे ।। उन किसानों की आहों से दिशाओं के जलने से धुआँ उठा या क्षितिज के किनारे बादल उठे, यह निश्चित नहीं हो रहा था ।। लेकिन आकाश में उठे बादलों को देखकर ऐसा लगता था कि दीन-दुखियों पर दया करने वाले ईश्वर के कानों में अब उनकी आवाज पहुँच गई है और संभवतः यह न कहना पड़ेगा कि कृषि (खेती) सूखने पर वर्षा होने का क्या लाभ? निस्संदेह काले बादलों को देखकर लगता था कि अब वर्षा होगी और खेती सूखने से बच जाएगी ।। लेखक कहता है कि आकाश में काजल के समान काले-काले बादलों को उमड़ते-घुमड़ते देखकर उसका मन प्रसन्नता से झूम उठा ।।
वह बादलों की उपयोगिता के स्थान पर उनकी सुंदरता से अधिक प्रभावित होता है ।। वह वर्षा की छोटी-छोटी बूंदों का आनंद लेते हुए घर से बाहर निकल पड़ता है ।। घूमते-फिरते बूंदों के सुख देने वाले ठंडे स्पर्श से प्रसन्न हो उठा ।। आनंद और कर्त्तव्य तथा श्रेय-प्रेय का समन्वय करने के लिए वर्षा में ही कॉलेज भी चला गया ।। यह बात अलग है कि उसकी तो सदा छुट्टी ही रहती है तब भी वर्षा में कॉलेज बंद हो जाने के कारण बालकपन के संस्कारों के कारण प्रसन्नता का अनुभव किया ।।
अर्थात् जैसे बालकपन में वर्षा के कारण स्कूल बंद होने पर आनंद का, प्रसन्नता का अनुभव होता था उसी प्रकार अब कॉलेज के बंद होने पर प्रसन्नता का अनुभव हुआ ।। वर्षा के कारण धुलकर साफ़-सुथरी हुई सड़कों की चमकीली शोभा तथा प्रकृति में चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य का रसपान करता हुआ तथा हँसता-खेलता हुआ, खेतों की ओर प्रसन्नतापूर्वक देखता हुआ, उत्साहभरे हृदय से वापस आया ।।
विशेष:
इन पंक्तियों में लेखक ने अवर्षा के प्रभाव का वर्णन किया है ।। बाद में वर्षा होने के प्रभाव को व्यक्त किया है ।। वर्षा के प्राकृतिक सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया गया है ।।
भाषा संस्कृत प्रधान है ।।
शैली वर्णनात्मक एवं आत्मनिष्ठ है ।।
मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण गद्यांश आकर्षक बन पड़ा है ।।
लोकोक्तियों के प्रयोग से सजीवता आ गई है ।।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक ने किस धर्म-पालन की बात की है?
उत्तर:
लेखक ने खेती करने के धर्म-पालन की बात की है ।। धर्म-पालन के लिए उसने खेत में चरी बोई थी ।।
प्रश्न (ii)
ज्वार की पत्तियाँ ऐंठ-ऐंठकर बत्तियाँ क्यों बन गई थीं?
उत्तर:
पानी की कमी के कारण ज्वार की पत्तियाँ ऐंठकर बत्तियाँ बन गई थीं ।।
प्रश्न (iii)
किसानों की आहों का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
किसानों की आहों का यह असर हुआ कि आकाश में बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे ।।
गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक किंस संस्था का भूतपूर्व सदस्य था?
उत्तर:
लेखक जीव-दया प्रचारिणी सभा का भूतपूर्व सदस्य था ।।
प्रश्न (ii)
आँसुओं का पानी कैसा होता है?
उत्तर:
आँसुओं का पानी खारा होता है ।। इस कारण सिंचाई के काम नहीं आ सकता ।।
प्रश्न (iii)
लेखक बादलों के किस रूप से प्रभावित होता है?
उत्तर:
लेखक बादलों के सौंदर्य रूप से अधिक प्रभावित होता है ।।
प्रश्न 2 .
मैं अपने तहखाने के रोशनदानों पर गर्व किया करता था कि मैं उनके कारण सायंकाल को भी वहाँ बैठकर लिख-पढ़ सकता था ।। जो महाशय मेरा मकान देखने की कृपा करते, उनसे मैं आर-पार वायु संचार की तारीफ बड़ी प्रसन्नता के साथ करता था, क्योंकि उससे मुझे अपनी टूटी-फूटी शान और स्वास्थ्य-विज्ञान संबंधी ज्ञान के प्रदर्शन का मौका मिल जाता ।। सौंदर्यप्रिय होते हुए भी तहखाने के झरनों के पुष्ट मांसल सौंदर्य का आस्वादन न कर सका ।। यदि घर फूंक तमाशा भी देखना चाहता तो नामुमकिन हो गया था ।।
एक साथ बिजली ठप्प हो गई ।। घर फूंक तमाशा देखने वाले को कम से कम प्रकाश की तो जरूरत नहीं होती ।। यहाँ तो पूर्व जन्म के पापों के उदय होने के कारण ‘असूर्या नाम ते लोकाः अन्धेन तमसावृताः’ का दृश्य . उपस्थित हो गया ।। घनी कालिमा बिना स्तर-स्तर जमे ही पीन होने लगी ।। सूची-भेद्य अंधकार का साम्राज्य हो गया ।। हाथ को हाथ नहीं सूझता था ।। बाइबिल के आदर्श दानी की भाँति दायाँ हाथ बाएँ हाथ की बात नहीं जान सकता था ।। सर से सर टकराने की नौबत आ गई थी ।। लालटेन की पुकार होने लगी ।। (Pages 5-6)
शब्दार्थ:
तहखाना – जमीन के नीचे बना हुआ कमरा ।।
गर्व – घमंड, अभिमान ।।
तारीफ़ – प्रशंसा ।।
मांसल – मांस से भरा हुआ, पुष्ट ।।
आस्वादन – स्वाद लेना ।।
नामुमकिन – असंभव ।।
पीन-भरा – पूरा, स्थूल ।।
नौबत – स्थिति ।।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश बाबू गुलाबराय द्वारा लिखित निबंध ‘नर से नारायण’ से लिया गया है ।। लेखक अपनी कोठी में बने तहखाने का वर्णन करने के साथ-साथ, वर्षा के प्रभाव का वर्णन कर रहा है ।।
व्याख्या:
लेखक कहता है कि कोठी में जमीन के अंदर बने कमरे (तहखाने) के रोशनदानों पर उसे बड़ा घमंड था, क्योंकि इन रोशनदानों से रोशनी के साथ-साथ वायु का आवागमन निरंतर होता रहता था ।। इन्हीं रोशनदानों के कारण वह तहखाने में बैठकर शाम को भी लेखन-कार्य कर सकता था ।। जो भी व्यक्ति लेखक का मकान देखने आता, लेखक उन्हें अपने तहखाने को दिखाता और उसमें वायु के आने-जाने के लिए बने रोशनदानों की बड़ाई करता ।। वायु संचार की व्यवस्था बताता ।। इसके कारण लेखक को अपनी झूठी शान और स्वास्थ्य-विज्ञान संबंधी अपनी शान का दिखावा करने का अवसर मिलता था ।।
लेखक कहता है कि वह सौंदर्यप्रिय होते हुए भी तहखाने के रोशनदानों से तहखाने के अंदर गिरने वाले बाढ़ के पानी के झरनों के मांस से भरे हुए अर्थात् पुष्ट सौंदर्य के स्वाद का आनंद नहीं ले सका ।। परंतु यदि वह हानि उठाकर प्रसन्न होना चाहता तो भी यह असंभव हो गया था ।। अर्थात् तहखाने में रोशनदानों से बाढ़ का पानी भर गया था, अतः उसमें गिरने वाले बाढ़ के पानी के झरनों के सौंदर्य का आनंद लेना संभव नहीं था ।।
हानि उठाकर प्रसन्न होने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है क्योंकि अंधकार में सौंदर्य को नहीं देखा जा सकता ।। यहाँ तो स्थिति यह हो गई थी कि पिछले जन्म के पापों के कारण असूर्या के नाम लेने मात्र से ही जैसे संसार में अंधकार फैल जाता है, उसी प्रकार पूरे मकान में बिजली चली जाने के कारण अंधकार फैल जाने का दृश्य उपस्थित हो गया था ।।
अँधेरे के कारण हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था ।। बाइबिल में वर्णित दानी की तरह दायाँ हाथ बाएँ हाथ की बात नहीं जान सकता था ।। अर्थात् बाइबिल में कहा गया है . कि दान देते समय एक हाथ दूसरे हाथ की बात न जान पाए, वही श्रेष्ठ दान होता है ।। अंधकार के कारण घर के सदस्यों के बीच परस्पर टकराने की स्थिति आ गई थी ।। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ।। ऐसी स्थिति में लालटेन की तलाश होने लगी ।।
विशेष:
लेखक ने मकान में बने तहखाने के हवा और प्रकाशयुक्त होने का वर्णन करने के साथ-साथ उसमें बने रोशनदानों से बाढ़ का पानी अंदर घुसने का वर्णन किया है ।।
बिजली जाने की स्थिति का वर्णन किया है ।।
भाषा संस्कृत प्रधान है ।।
मुहावरों और लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग किया गया है ।।
वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ उदाहरण शैली प्रयुक्त है ।।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक को किस पर और क्यों गर्व था?
उत्तर:
लेखक को तहखाने में बने रोशनदानों पर बड़ा गर्व था क्योंकि उनसे प्रकाश के साथ-साथ वायु का आर-पार संचार होता था ।।
प्रश्न (ii)
तहखाने के झरने किसे कहा गया है?
उत्तर:
तहखाने के रोशनदानों से उसके अंदर गिरते बाढ़ के पानी की धाराओं को तहखाने के झरने कहा गया है ।।
प्रश्न (iii)
‘हाथ को हाथ न सूझना’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर:
गहन अंधकार होना ।।
गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
तहखाने में अंधकार क्यों हो गया था?
उत्तर:
बिजली गुल हो जाने के कारण तहखाने में क्या पूरे घर में अंधकार हो गया था ।।
प्रश्न (ii)
किसको प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती?
उत्तर:
घर फूंककर तमाशा देखने वाले को प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती ।।
प्रश्न (iii)
लालटेन की पुकार क्यों होने लगी?
उत्तर:
बिजली गुल होने के कारण गहनं अंधकार हो गया, किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए लालटेन की पुकार होने लगी ।।
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प्रश्न 3 .
मैं अपने हाल को नूह की किश्ती या मनु की नौका समझ रहा था ।। उस समय तक भी, चिंता की प्रथम रेखा मेरे ललाट के प्रांगण में खेलती हुई नहीं दिखाई दी, किंतु थोड़ी ही देर में पास के कमरे से ‘चलियो’ की आवाज आई ।। मेरे बाग के माली श्री मंगलदेव जी मेरे मंगल-विधान में सदा दत्तचित्त रहते थेचिल्ला उठे, ‘बाबू जी उधर ही रहना ।। ’ मैं समझा कहीं से साँप आ गया ।। खैर, यह भी सही ।। मेरे दूसरे चाकर देव श्री रणधीर जी ने बड़ी धीरतापूर्वक कहा कि कुछ नहीं, जमीन बैठ गई है ।। बड़े आदमियों की भाँति उसकी बात भी आधी सच थी ।।
जमीन बैठी थी और फर्श के पत्थर आपस में सर से सर मिलाकर खड़े हो गए थे, मानो वे सचेत होकर मेरे परित्राण का उपाय सोच रहे हों ।। उसी समय मेरी गुर्विणी महिषी (भैंस) की, जिसको कलियुग के व्यास जी ने अपनी कविता से अमर कर दिया है, समस्या मेरे सामने आई ।। उसका छप्पर भी तालाब बन चुका था ।। उस पर भी एक त्रिपाल डालकर उसे दरवाजे पर खड़ा किया ।। बहुत कोशिश करने पर . भी बरामदे में पैर न रखा, शायद वह जानती थी कि उसका भी फर्श धसकेगा ।। (Page 6) (M . P 2009)
शब्दार्थ:
नूह – आदम से दसवीं पीढ़ी में पैदा हुए एक पैगंबर (जिनके समय में एक ऐसा तूफान आया था कि सारी सृष्टि जलमग्न हो गई थी ।। उस समय अपने परिवार तथा जानवरों के एक-एक जोड़े के साथ स्वनिर्मित नौका में बैठाकर इन्होंने सबके प्राण बचाए थे और उन्हीं से पुनः सृष्टि चली ।।
मनु – ब्रह्म के मानस पुत्र आदि प्रजापति ।।
किश्ती – नौका ।।
ललाट – माथा ।।
चाकर – नौकर, सेवक ।।
परित्राण – रक्षा ।।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश बाबू गुलाबराय द्वारा लिखित निबंध ‘नर से नारायण’ से लिया गया है ।। इन पंक्तियों में अति बारिश के कारण लेखक के मकान पर होने वाले प्रभाव का वर्णन किया गया है ।। वर्षा ने उसके घर को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है ।।
व्याख्या:
वर्षा की अधिकता के कारण लेखक के मकान के चारों ओर पानी भर गया और पूरा घर जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो गया ।। कहीं फर्श टूट गया तो कहीं जमीन धंस गई ।। लेखक स्वयं को इस स्थिति में अपने जलमग्न घर को नूह की नौका अथवा मनु की नौका समझ रहा था ।। नूह और मनु ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने जल प्रलय की स्थिति में नौका में बैठकर अपने प्राण बचाए थे और उन्हीं से सृष्टि चली थी ।। जब तक घर चारों ओर से जलमग्न हो रहा था तब तक लेखक के माथे पर चिंता की एक भी रेखा दिखाई नहीं दी थी, किंतु जब पास के कमरे से चलियो’ की आवाज आई तो वह चिंतित हो उठा ।।
उसके बाग की देखभाल करने वाले माली मंगलदेव जी जो उसके हित के लिए सदैव दत्तचित्त होकर काम में लगे रहते थे, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “बाबूजी उधर ही रहना ।। ” लेखक को कुछ स्पष्ट समझ नहीं आया ।। उसे लगा कि कोई साँप आ गया होगा, जिसके कारण मंगलदेव ने उधर आने से मना किया होगा ।। लेखक ने सोचा, चलो यह भी होना था ।। उनके दूसरे सेवक जिसका नाम रणधीर था, अपने नाम को सार्थक करते हुए बड़े धैर्य के साथ कहा कि कुछ नहीं हुआ, केवल जमीन बैठ गई है ।। लेखक कहता है जिस प्रकार बड़े आदमियों की बात आधी ही सच होती है, उसी प्रकार मेरे नौकर की बात भी आधी सच थी ।। जमीन तो धंसी ही थी उसके साथ फर्श भी बैठ गया था ।। फर्श के पत्थर उखड़कर एक-दूसरे के किनारे से मिलकर खड़े हो गए ।।
अर्थात् फर्श भी टूट-फूट गया था ।। फर्श के खड़े हुए पत्थर ऐसे प्रतीत होते थे, मानो वे खड़े होकर लेखक की रक्षा का उपाय सोच रहे हों ।। उसी समय लेखक की गुणवंती भैंस, जिसको कलयुग के व्यासजी ने अपनी कविताओं का विषय बनाकर अमर बना दिया है, की समस्या उसके सामने उत्पन्न हो गई ।। भैंस को जिस छप्पर में बाँधा जाता था वह छप्पर भी अतिवर्षा से तालाब बन गया ।। अतः भैंस पर एक त्रिपाल डालकर घर के दरवाजे पर खड़ा किया गया ।। उसे बरामदे में बाँधने का बहुत प्रयत्न किया गया, परंतु उसने बरामदे में पैर नहीं रखा ।। संभवतः वह जानती थी कि उसका फर्श भी नीचे धंस जाएगा ।। बाद में बरामदे का फर्श भी बैठ गया ।।
विशेष:
लेखक ने अतिवर्षा के कारण क्षतिग्रस्त हुए मकान की दुर्दशा का वर्णन किया है ।। नूह और मनु जैसे पौराणिक पात्रों की ओर संकेत किया गया है ।।
भाषा संस्कृत प्रधान है ।।
मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है ।।
वर्णनात्मक और उदाहरण शैली है ।।
व्यंग्यात्मकता का समावेश है ।।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक के ललाट पर किस समय तक चिंता की प्रथम रेखा नहींदिखाई दी ।।
उत्तर:
जब लेखक का पूरा मकान बाढ़ के पानी में घिरता रहा, तब तक उसके ललाट पर चिंता की एक रेखा नहीं दिखाई दी ।।
प्रश्न (ii)
लेखक ने स्वयं के हाल को नूह की किश्ती या मनु की नौका क्यों समझता रहा था?
उत्तर:
प्रलयकाल में जब सारी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तो नूह अथवा मनु ने नाव में बैठकर जल-प्रवाह से अपने प्राणों की रक्षा की थी ।। लेखक भी जिस हाल में बैठा था, उसे ही प्राणों की रक्षा करने वाली नौका समझ रहा था ।।
प्रश्न (iii)
माली मंगलदेव के चिल्लाने का लेखन ने क्या अर्थ निकाला?
उत्तर:
माली मंगलदेव के चिल्लाने का लेखक ने अर्थ निकाला कि कोई साँप आ गया होगा ।।
गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक ने अपने नौकर रणधीर की किस बात पर व्यंग्य किया है?
उत्तर:
लेखक ने रणधीर द्वारा बड़े धैर्य के साथ कही गई इस बात पर व्यंग्य किया है कि कुछ नहीं हुआ, जमीन बैठ गई है ।। अर्थात् नौकर की दृष्टि में जमीन बैठना कोई बड़ी बात नहीं थी ।।
प्रश्न (ii)
कलियुग का व्यास किसे कहा गया है?
उत्तर:
कलियुग का व्यास आजकल के कवियों को कहा गया है ।।
प्रश्न (iii)
लेखक के सामने भैंस की क्या समस्या आई?
उत्तर:
भैंस को जिस छप्पर में रखा जाता था, वह भी जलमग्न होकर तालाब बन गया था ।। अब लेखक के सामने भैंस को बचाने की समस्या उत्पन्न हो गई ।।
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प्रश्न 4 .
मेरे एक पड़ोसी श्री बनर्जी साहब अपनी व्यवहार-कुशलता की दिव्य दृष्टि से मेरा भविष्य देख चुके थे ।। वे शाम को ही कह गए थे कि यदि कोई तकलीफ ही तो उनका मकान मेरे ‘डिसपोजल’ पर है ।। उस समय तो मैंने उनका सहानुभूतिपूर्ण निमंत्रण स्वीकार नहीं किया था, किंतु जब मेरे घर के सामने भी पानी बहने लगा और मेरा मकान प्रायद्वीप बन गया, बरामदे और शयनागार का भी फर्श बैठ गया और उनकी टाइलें मेरे बैठते हुए दिल की समता करने लगी तब जल्दी से मैंने बनर्जी साहब का निमंत्रण स्वीकार किया ।।
मकान में ताला लगाकर उनका द्वार खटखटाया ।। उन्होंने मुझे, मेरे नौकर तथा मेरी भैंस को अपने यहाँ आश्रय दिया ।। चिंता-ग्रस्त मनुष्य को जितनी निद्रा आ सकती है, उतनी ही नहीं उससे कुछ अधिक निद्रा मुझे आई, क्योंकि कोठी के लिए तो मैंने कड़ा जी कर मन में सोच लिया था, ‘इदन्न मम, इदं वरुणाय ।। ’ निद्रा भंग करने की यदि कोई बात थी तो पड़ोस के सज्जनों और सज्जनाओं की करुण पुकार थी ।। मेरी भैंस तो सुरक्षित थी किंतु गरीब लोगों के जानवर चिल्ला रहे थे ।। बहुत कोशिश करने पर भी मैं उनकी कुछ सहायता न कर सका ।। अंधकार और जल के कारण ‘समुझ परहिं नहि पंथ’ की बात हो रही थी ।। (Page 6)
शब्दार्थ:
व्यवहार-कुशलता – आचरण की निपुणता ।।
दिव्य दृष्टि – सूक्ष्म दृष्टि, आंतरिक दृष्टि ।।
डिसपोजल – व्यवस्था, प्रबंध, अधिकार ।।
प्रायद्वीप – पानी से चारों ओर से घिरी भूमि ।।
निद्रा – नींद ।।
शयनागार – शयन कक्ष ।।
समता – समानता ।।
करुण – दयनीय ।।
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश बाबू गुलाबराय द्वारा लिखित निबंध ‘नर से नारायण’ से लिया गया है ।। लेखक का मकान बाढ़ के पानी से घिर गया था ।। कहीं जमीन धंस गई थी ।। तो कहीं फर्श बैठ गया था ।। उनके पड़ोसी बनर्जी ने लेखक से किसी भी तकलीफ में अपने घर में आश्रय लेने का प्रस्ताव रखा था ।। अंत में लेखक के परिवार को उनके घर में शरण लेनी पड़ी ।। इसी घटना का वर्णन उपर्युक्त पंक्तियों में किया गया है ।।
व्याख्या:
मेरे एक पड़ोसी श्री बनर्जी साहब अपनी आचार निपुणता की आंतरिक दृष्टि से मेरा भविष्य देख चुके थे ।। अर्थात् बनर्जी साहब लेखक के मकान की क्षतिग्रस्त स्थिति का अनुमान लगा चुके थे ।। इसीलिए एक पड़ोसी के नाते लेखक के घर आकर कह गए थे कि यदि कोई कठिनाई हो तो उनके घर का प्रयोग कर सकते हैं ।। उनका मकान लेखक के लिए प्रस्तुत है ।। उस समय तो लेखक ने उनका सहानुभूति से भरा निमंत्रण ठुकरा दिया था परंतु जब लेखक के घर के सामने भी पानी बहने लगा और उसके घर के चारों ओर पानी भरने से उसका घर प्रायद्वीप जैसा बन गया, उसके रहने, बैठने और सोने के लिए कोई स्थान नहीं रहा तब उसके निराश हृदय ने शीघ्रता से अपने पड़ोसी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया ।।
वह अपने मकान में ताला लगाकर पड़ोसी के घर परिवार सहित पहुँचा और उनका दरवाजा खटखटाया ।। पड़ोसी ने लेखक और उनके सेवकों और उनकी भैंस को शरण दी ।। चिंता में डूबे मनुष्य को जितनी नींद आ सकती है, उससे अधिक नींद लेखक को आई क्योंकि उन्होंने अपनी कोठी के संबंध में अपना मन दृढ़ कर सोच लिया था कि यह मेरा नहीं है, यह इंद्र का है ।। लेखक कहता है कि यदि नींद भंग होने या करने की कोई बात अथवा कारण था तो पड़ोस में काछी और कुम्हार स्त्री-पुरुष की करुण पुकार थी ।। लेखक की भैंस तो सुरक्षित थी किंतु उन गरीब लोगों के जानवर डूबने के भय से चिल्ला रहे थे ।। लेखक कहता है कि मैं प्रयास करने के बाद भी उनकी जरा भी मदद नहीं कर पाया ।। अंधकार और पानी के भर जाने के कारण दूसरों के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था ।।
विशेष:
लेखक ने अपने पड़ोसी की व्यवहार-कुशलता का परिचय दिया है ।। पड़ोसी ने लेखक को अपने घर में आश्रय देकर अच्छे पड़ोसी होने का कर्त्तव्य निभाया है ।।
भाषा संस्कृत प्रधान है ।। संस्कृत के पूरे-पूरे वाक्य का भी प्रयोग किया गया है ।। भाषा में अंग्रेजी शब्द ‘डिसपोजल’ का भी प्रयोग हुआ है ।।
भाषा में मुहावरों का भी सटीक प्रयोग हुआ है ।।
वर्णनात्मक और उद्धरणात्मक शैली है ।।
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
बनर्जी साहब लेखक का क्या भविष्य देख चके थे?
उत्तर:
वे लेखक के घर की स्थिति देखकर अनुमान लगा चुके थे कि उन्हें भविष्य में कष्ट होने वाला है ।।
प्रश्न (ii)
बनर्जी ने लेखक के सामने क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
लेखक के सामने बनर्जी ने प्रस्ताव रखा कि बाढ़ के प्रकोप से बचने के लिए वे सपरिवार उसके घर में आश्रय ले सकते हैं ।।
प्रश्न (iii)
लेखक ने अपने पड़ोसी बनर्जी के घर में आश्रय क्यों लिया?
उत्तर:
लेखक का घर पानी से घिर गया था ।। उसके तहखाने में पानी भर गया था तथा बरामदे और शयन कक्ष का फर्श बैठ गया था ।। उनके सुरक्षित रहने के लिए कोई स्थान नहीं बचा था ।। इसलिए लेखक ने पड़ोसी के घर में आश्रय लिया था ।।
गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
लेखक के पड़ोसी कौन थे?
उत्तर:
लेखक के पड़ोसी श्री बनर्जी साहब थे ।।
प्रश्न (ii)
पड़ोसी के घर में लेखक को कैसी नींद आई?
उत्तर:
पड़ोसी के घर में लेखक को चिंता में डूबे व्यक्ति से कुछ अधिक नींद आई ।।
प्रश्न (iii)
लेखक ने नींद भंग करने के क्या कारण बताई हैं?
उत्तर:
लेखक ने गरीब काछी-कुम्हारों की स्त्री-पुरुषों की करुण पुकार और उनके जानवरों के चिल्लाने की आवाजों को नींद भंग करने के कारण बताए हैं ।।