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रामनरेश त्रिपाठी

कवि परिचय – रामनेरश त्रिपाठी का जन्म जौनपुर (उ.प्र.) के कोइरीपुर नामक गाँव में सन् 1889 ई. में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जौनपुर में ही हुई मात्र बाईस वर्ष की आयु में इन्होंने काव्य रचना के क्षेत्र में पदार्पण किया। सन् 1962 ई. में त्रिपाठी जी का देहावसान हो गया।

रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावादी भावधारा के प्रतिष्ठित कवि हैं। हिन्दी कविता में स्वच्छन्दतावाद (रोमांटिसिज्म) के जन्मदाता श्रीधर पाठक की काव्य पंरपरा को इन्होंने आगे बढ़ाया है। देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की अनुभूति इनकी रचनाओं के मुख्य विषय है। प्रकृति चित्रण में कवि को अद्भुत सफलता मिली है। त्रिपाठी जी की चार काव्य कृतियाँ उल्लेखनीय हैं ‘मिलन’, ‘पथिक’, ‘मानसी’, और स्वप्न। ‘वीरबाला’, ‘लक्ष्मी’ और ‘वीरांगना’ इनके उपन्यास तथा ‘सुभद्रा’, ‘जयन्त’ और ‘प्रेमलोक’ नाट्य कृतियाँ हैं।

रामनरेश त्रिपाठी प्रकृति के सफल चितेरे हैं। उन्होंने अपनी कृतियों में प्रकृति का चित्रण व्यापक, विशद् और स्वतंत्र रुप से किया है सहज मनोरम प्रकृति चित्रों में छायावादी झलक स्पष्ट दिखाई देती है। छायावादी शैली का मानवीकरण और रूमानियत कवि की रचनाओं में यत्र-तत्र विद्यमान है। श्री त्रिपाठी की काव्य भाषा सहज, शुद्ध और खड़ी बोली है। कविता में व्याकरणिकं नियमों का विशेष पालन किया गया है। उन्होंने कहीं-कहीं लोक प्रचलित उर्दू छन्दों एवं शब्दों का प्रयोग किया है।

द्विवेदी युग और छायावाद के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में रामनरेश त्रिपाठी का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। छायावादी भाषा शैली का स्रोत उनकी काव्य कृतियों में देखा जा सकता है। इन्हीं रचनाओं से हिन्दी काव्यधारा मुड़कर छायावाद के रूप में विकसित और गतिशील होती है।

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