Mp board class 10 hindi udbodhanam Ramdhari singh dinakar
वैराग्य छोड़कर बाँहों की विभा सँभालो, चट्टानों की छाती से दूध निकालो। है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो, पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।
चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे! योगियों नहीं, विजयी की सदृश जिओ रे!
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए, मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए। दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है, मरता है जो एक ही बार मरता है।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे! जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!
स्वातंत्र्य जाति की लगन, व्यक्ति की धुन है, बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है। नत हुए बिना जो अशनि-घात सहती है, स्वाधीन जगत् में वही जाति रहती है।
वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे
जो पड़े आन, खुद ही सब आग सही रे!
जब कभी अहं पर नियति चोट देती है, कुछ चीज अहं से बड़ी जन्म लेती है, नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है, वह उसे और दुर्घर्ष बना जाती है।
चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे! धधको, स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे!
स्वर में पावक यदि नहीं वृथा वन्दन है। वोरता नहीं, तो सभी विनय क्रन्दन है; सिर पर जिसके असिंघात रक्त चन्दन है, भ्रामरी उसी का करती अभिनन्दन है।
दानवी रक्त से सभी पाप धुलते हैं। ऊँची मनुष्यता के पथ भी खुलते हैं!
जीवन गति है, वह नित अरुद्ध चलता है, पहला प्रमाण पावक का वह जलता है। सिखला निरोध-निर्ज्वलन धर्म छलता है, जीवन तरंग-गर्जन है, चंचलता है।
धधको अभंग, पाल- विपल अरुण जलो रे ! धरा रोके यदि राह, विरुद्ध चलो रे
-रामधारी सिंह ‘दिनकर‘