Mp board Class 10 Hindi kavi giridhar jeevan parichay

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कवि गिरिधर का जीवन परिचय

ये इलाहाबाद के आस-पास के रहने वाले थे और भाट जाति के थे। शिवसिंह सेंगर ने इनका जन्म सन् 1713 तथा रचनाकाल 18 वीं सदी माना है। आपकी कुण्डलियाँ हस्त लिखित पोथियों के रूप में मिलती हैं। जिनके दस संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। सबसे बड़े संग्रह में 457 कुण्डलियाँ हैं। इन्होंने कुछ दोहे, सोरठे और छप्पय भी लिखे।

कवि परिचय — गिरिधर के जीवन और समय के सम्बंध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। आपने – अधिकांश कुण्डलियाँ अवधी भाषा में लिखी हैं। इससे अनुमान लगता है कि ये इलाहाबाद के आस-पास के रहने वाले थे और भाट जाति के थे। शिवसिंह सेंगर ने इनका जन्म सन् 1713 तथा रचनाकाल 18 वीं सदी माना है। आपकी कुण्डलियाँ हस्त लिखित पोथियों के रूप में मिलती हैं। जिनके दस संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। सबसे बड़े संग्रह में 457 कुण्डलियाँ हैं। इन्होंने कुछ दोहे, सोरठे और छप्पय भी लिखे।

जन-जीवन में कवि गिरिधर के बहुत अधिक प्रचार का कारण इनका दैनिक जीवन के लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण बातों का सरल और सीधी भाषा-शैली में कथन है। इनमें अपने अनुभव पर आधारित नई बातों के साथ पारम्परिक कथन भी है। भोलानाथ तिवारी ने ‘हिन्दी नीति काव्य संग्रह’ में पर्याप्त मात्रा में नीति-काव्य लिखने वाले कवियों में इनकी गणना की है।

कवि परिचय आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता और भारतीय नवोत्थान के प्रतीक हरिश्चन्द्रजी – का जन्म सन् 1850 ई. को काशी में हुआ था। आपने अपनी प्रतिभा, कुशाग्र बुद्धि और अद्भुत स्मरण- शक्ति के बल पर मराठी, बंगला, गुजराती, मारवाड़ी, पंजाबी, उर्दू आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। लम्बे देशाटन से उन्होंने कई स्थलों के स्थानीय जीवन-क्रम एवं वहाँ की साहित्यिक गतिविधियों का अध्ययन किया। देश-प्रेम, मातृभाषा – हिन्दी प्रेम तथा इनके विकासार्थ की गई सेवाओं के कारण सन् 1880 ई. में आपको ‘भारतेन्दु’ की उपाधि से विभूषित किया गया। 06 जनवरी 1885 ई. को पैंतीस वर्ष की अल्पायु में ही आपका गोलोकवास हो गया।

भारतेन्दु जी का काव्यक्षेत्र व्यापक है। भक्ति और श्रृंगार आपकी कविता का प्रधान रस है। भावप्रवणता, देश-प्रेम और समाज-सुधार का स्वर आपकी रचनाओं में बहुत सशक्त है। आपका शृंगार रीतिकालीन कवियों से भिन्न एवं शिष्ट है। राष्ट्र-प्रेम- भाव आपके हृदय सिंधु में हिलोरें मारता है। आपकी रचनाएँ छन्दबद्ध हैं। छप्पय, कुंडलियाँ, हरिगीतिका आदि अनेक छन्दों का प्रयोग आपकी रचनाओं में हुआ है। आपने लोकछन्दों लावनी, ख्याल और कजरी का भी उपयोग किया है। काव्य भाषा ब्रज है, किन्तु शनैः-शनै: आपने खड़ी बोली- काव्य को जन्म दिया, सजाया और सँवारा है। लोकोक्तियाँ और मुहावरों का यथास्थान प्रयोग कर अलंकारिक शैली को अपनाया है। उपमा, रूपक, अनुप्रास और श्लेष आपके प्रिय अलंकार हैं।

आपके द्वारा ‘कविवचन सुधा’, ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’, ‘नवोदिता’, तथा ‘बाल-बोधिनी’, आदि पत्रों का प्रकाशन किया गया। प्राचीन और नवीन युग के संधि-स्थल पर दोनों युगों के उपयोगी विचारों का आपने उदारता-पूर्वक स्वागत किया।

भारतेन्दुजी की मौलिक नाट्य रचनाओं में ‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’, ‘चन्द्रावलि नाटिका’, ‘विषस्य विषमौषधम्’, – ‘भारत दुर्दशा’, और ‘अंधेर नगरी’ प्रसिद्ध हैं। ‘पूर्ण प्रकाश’ और ‘चन्द्रप्रभा’ आपके प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास हैं। आपकी अनेक काव्य कृतियों में भक्ति-प्रेम, शृंगार और नीति सम्बन्धी रचनाएँ हैं। ‘प्रेम माधुरी’, ‘प्रेम सरोवर’, ‘प्रेमतरंग’, ‘प्रेमप्रलाप’, ‘सुन्दरी तिलक (सवैया संग्रह)’ और ‘पावस भक्ति संग्रह’ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। वे पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण, हिन्दी के प्रति उदासीनता और भारतीय जीवन की बुराइयों के प्रबल विरोधी, देशभक्त कवि थे।

भारतेन्दुजी युगान्तकारी रचनाकार थे। हिन्दी उन्नायकों में आपका स्थान सर्वोच्च है।

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