Mp board Class 10 hindi chapter neeti dhara गिरधर की कुंडलिया

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बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ ॥ ताही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै दुर्जन हँसे न कोई, चित्त में खता न पावै ॥ कह गिरिधर कविराय यह करु मन परतीती। आगे की सुख समुझि, हो, बीती सो बीती ॥1 ॥

साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोइ तब लग मन में राखिए, जब लग कारज होइ ॥ जब लग कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए। दुरजन हँसे न कोई आप सियरे हवे रहिए | कह गिरिधर कविराय, बात चतुरन की ताई करतूती कहि देत, आप कहिए नहि साईं ॥2 ॥

बिना बिचारे जो करे, सो पीछे पछिताय । काम बिगार आपनो, जग में होत हँसाय ॥ जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै । खान पान सनमान, राग-रंग मनहिं न भावै ॥ कह गिरिधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे । खटकत है जिय माहिं, कियो जो बिना बिचारे ॥3 ॥

दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान । चंचल जल दिन चारि को, ठाउँ न रहत निदान ॥ ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै। मीठे वचन सुनाय, विनय सबही की कीजै ॥ कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत पाहुन निसि दिन चारि, रहत सबही के दौलत ॥4 ॥

गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय। जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ॥ शब्द सुन सब कोय, कोकिला सबै सुहावन। दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन ॥ कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के। बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के ।।5॥

नीति अष्टक

मान्य योग्य नहिं होत कोऊ कोरो पद पाए। मान्य योग्य नर ते जे केवल परहित जाए ॥1 ॥

बिना एक जिव के भए, चलिहँ अब नहिं काम ।

तासों कोरो ज्ञान तजि उठहु छोड़ि बिसराम ॥2॥

बैर फूट ही सों भयो सब भारत को नास

बहुँ न छाड़त याहि सब बँधे मोह के फाँस ॥3॥

कोरी बातन काम कछु चलिहँ नाहिन मीत । तास उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत ॥4॥

निज भाषा, निज धरम, निज मान करम ब्यौहार । सबै बढ़ावहु बेगि मिलि कहत पुकार पुकार ॥5॥

करहुँ बिलम्ब न प्रात अब उठहु मिटावहु सूल ।

निज भाषा उन्नति करहु प्रथम जो सबको मूल ॥6॥

सेत सेत सब एक से जहाँ कपूर कपास

ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास ।।7 ।।

कोकिल वायस एक सम पण्डित मूरख एक।

इन्द्रायन दाड़िम विषय, जहाँ न नेक विवेक ।।8।।

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