Mp board 10th hindi badal ko ghirate dekha hai

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बादल को घिरते देखा है — nagarjun

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या — कवि कहते हैं कि मैंने निर्मल श्वेत पर्वत की चोटियों पर बादल घिरते देखा है । उन बादलों में से निकलने वाले मोती की बूँदों जैसे ओस कृणों को मानसरोवर तालाब में खिले स्वर्णिम कमल पर गिरतै देखा है । उसके बाद पुन : आकाश में बादलों को घिरते हुए देखा है ।

तुंग हिमालय के कन्धों पर, छोटी बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस की ऊमस से आकुल तिक्त मधुर बिस-तंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या – पर्वतीय प्रदेश में बादलों के घिरने पर वहाँ की झीलों में तैरते हुए हंसों के सौन्दर्य का वर्णन इन पंकितियाँ में किया गया हैं । हिमालय की ऊँची ऊँची चोटियाँ के मध्य अनेक छोटे- बड़ी कई स्वच्छ झीलें हैं । उन झीलों पर बहने वाला जल एकदम पवित्र और नीला हैं. उस नीले निर्मल जल में पावस ऋतु की गर्मी और घुटन से दुखी हंस तैरते दिखाई देते हैं. ये हंस समतल देशों की गर्मी से व्याकुल होकर हिमालय की ठंडी झीलों में उगे कमलों के खट्टे मीठे तन्तुवों का स्वाद लेने की इच्छा से इन झीलों में चले आते हैं ।

ऋतु बसन्त का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा, बालारुण की मृदु किरणें थी अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती, निशा काल से चिर- अभिशापित बेबस उन चकवा – चकई का वंद हुआ क्रन्दन फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय- कलह छिड़ते देखा है। बादल को घिरते देखा है।

व्याख्या – वसंत की ऋतु थी. प्रभात की सुंदर बेला थी । वायु धीमी धीमी गति से चल रही थी । उगते सूरज की मीठी मीठी किरने धरती पर पड़ रही थी। सूर्य की – कोमल किरने अगल-बगल की चोटियाँ पर पड़ रही थी । कवि कहते हैं कि ऐसे सुन्दर सुनहले वातावरण में उन्होंने एक चकवा चकवी के जोड़े को प्रेम की – किल्लोरे करते हुए देखा हैं. उन्हें रात में परस्पर न मिलने का शाप मिला हुआ हैं इसीलिए उन्हें मजबूरन अलग अगल रहकर अपनी रातें बितानी पड़ती हैं । सुबह होते ही उनकी वियोग भरी पुकार समाप्त हो जाति हैं । तब उनमें मिलन होता हैं. ऐसा लगता हैं कि मानों वे जोर-जोर से बोलकर एक दूसरे को रात भर न मिलने का उलाहना दे रहे हों ।

दुर्गम बर्फानी घाटी में शत- सहस्र फुट ऊँचाई पर अलख नाभि से उठने वाले निज के ही उन्मादक परिमल के पीछे धावित हो होकर

व्याख्या – कवि कहते हैं कि दुर्गम बर्फानी घाटी में हजारों फुट की ऊँचाई पर न दिखने वाली नाभि से उठने वाली कस्तूरी की सुगंध से उन्मादित कस्तूरी मृग को दौड़ते हुए एवं कस्तूरी प्राप्त न होने पर चिढ़ते हुए देखा है और उसी घाटी में बादलों को घिरते हुए देखा है ।

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