motivational poem in hindi dulhe ki kharid

motivational poem in hindi dulhe ki kharid

प्रिय दोस्तो इस कविता के माध्यम से दुनिया की सच्चाई उजागर करने की कोशिश की गई है। खुद पढ़े समझें और दुसरो को भी पढाये।

हे पिता ,
मेरे लिये दूल्हा ख़रीद कर मत लाना ।
हे पिता , ख़रीदे हुये आदमी की क़ीमत मैं भूल नहीं पाऊँगी
हे पिता ,ख़रीदे जाने के बाद भी वह व्यक्ति मुझ से इज़्ज़त चाहेगा


हे पिता , इज़्ज़त क्या मैं तो बराबरी भी नहीं दे पाऊँगी
हे पिता , जो कुछ हम ख़रीद लाते हैं , उसके हम मालिक होते हैं ।
हे पिता, तुम कह रहे हो कि ख़रीदे हुये दूल्हे भी मालिक होते हैं
हे पिता ,मैं नहीं मान पा रही तुम्हारी आज्ञा और मैं बग़ावती हो रही हूँ ।


हे पिता , मैं चाहती हूँ कि इस मुद्दे पर हर लड़की बग़ावत कर दे ।
हे पिता , तुम मुझे अपनी या समाज की अपराधिनी कहो …
हे पिता , मैं ऐसे समाज की अपराधिनी हूँ ।


हे पिता , यह समाज का नहीं ,उस बाज़ार का दृश्य है जहाँ दूल्हे बिकते हैं
हे पिता , ये कैसे शिक्षित सभ्य युवक हैं जो बिकते हुये मौन हैं
हे पिता ,इन बेज़ुबानों के कारण ही ख़रीद फ़रोख़्त जारी है ।

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